Saturday, March 19, 2016

तू हवा है तो कर ले अपने हवाले मुझको,

तू हवा है तो कर ले अपने हवाले मुझको,
इससे पहले की कोई और बहा ले मुझको,
आइना बन के गुजारी है जिंदगी मैंने,
टूट जाऊंगा बिखरने से बचा ले मुझको,

जो आज कर गयी घायल वो हवा कौन सी है,
जो दर्द-ए-दिल करे सही वो दवा कौन सी है,
तुमने इस दिल को गिरफ्तार आज कर तो लिया,
अब जरा ये तो बता दो की दफा कौन सी है,

सोचता था मैं कि तुम गिर के संभल जाओगे,
रौशनी बन के अंधेरों को निगल जाओगे,
न तो मौसम थे न हालात न तारीख न दिन,
किसे पता था कि तुम ऐसे बदल जाओगे,

कवि: विष्णु सक्सेना

जो हम पर गुजरी है, जाना तुम्हे बताये क्या...


जो हम पर गुजरी है, जाना तुम्हे बताये क्या?
ये दिल तो टूट गया है, हम भी टूट जाएं क्या?
चिराग होने की मिलती हैं ये सजाएं क्या?
बुझा के मानेगी हमको भी ये हवाएँ क्या?
हमारे चारों तरफ हादसे हुए लेकिन, हमें बचाती हैं माँ बाप की दुआएं क्या?
तुम्हारे बाद सफर में कोई मजा ना रहा, हर एक मोड़ पर सोचा की लौट जाएँ क्या?
हमारे चेहरे के दागों पर तंज करते हो, हमारे पास भी है आइना, दिखाएँ क्या?
न टीस है न कसक है न आह है दिल में, चली गयी हैं हवेली से खादिमाएं क्या?
हमें लिबास भी सादा पसंद है निकहत , जो दिल ही बुझ गया, बाहर से जगमगाएँ क्या?

Beautiful lines from Dr. Naseem Nikhat..

Sunday, March 6, 2016

तुम्हे किसने कहा था तुम मुझे चाहो बताओ तो

तुम्हे किसने कहा था तुम मुझे चाहो बताओ तो,
जो दम भरते हो चाहत का तो फिर उसको निभाओ तो,
दिए जाते हो ये धमकी की गया तो फिर ना आऊंगा,
कहा से आओगे पहले मेरी दुनिया से जाओ तो,
मेरी चाहत भी है तुमको और अपना घर भी प्यारा है,
निपट लूँगा मै हर गम से तुम अपना घर बचाओ तो,
तुम्हारे सच की सच्चाई पर मैं कुर्बान हो जाऊ,
पर अपना सच बयां करने की तुम हिम्मत जुटाओ तो,
फकत इन बद्दुवाओं से  बुरा मेरा कहाँ होगा,
मुझे बर्बाद करने का जरा बीड़ा उठाओ तो,
तुम्हे किसने कहा था तुम मुझे चाहो बताओ तो,
जो दम भरते हो चाहत का तो फिर उसको निभाओ तो,

Beautiful Ghazals from Dipti Mishra(Madhwan's mother in Tanu weds Manu)...

वो नहीं मेरा मगर उससे मोहब्बत है तो है

वो नहीं मेरा मगर उससे मोहब्बत है तो है,
ये अगर रस्मों रिवाजों से बगावत है तो है,
सच को मैने सच कहा जब कह दिया तो कह दिया,
अब जमाने की नजर में ये हिमकत है तो है,
जल गया परवाना गर तो क्या खता है शम्मा की,
रात भर जलना जलाना उसकी किस्मत है तो है,
दोस्त बन कर दुश्मनों सा वो सताता है मुझे,
फिर भी उस जालिम पर मरना अपनी फितरत है तो है,
दुर थे और दुर है हरदम जमीन ओ आसमान,
दुरियो के बाद भी दोनो मे कुर्बत(समीपता) है तो है,
वो नही मेरा मगर उससे मोहब्बत है तो है,

Beautiful Ghazals from Dipti Mishra(Madhwan's mother in Tanu weds Manu)...

Sunday, February 14, 2016

A Poem by Vineet Chauhan

A Poem by a Soldier...

सबसे पहले माँ के लिए लिखता है... 
माँ तुम्हारा लाडला रण में अभी घायल हुआ है, पर देख उसकी वीरता को शत्रु भी कायल हुआ है;
रक्त की होली रचाये मै प्रलयंकर दिख रहा हूँ, माँ उसी शोणित से तुमको पत्र अंतिम लिख रहा हुँ;
यद्ध था भीषण मगर न इंच भर पीछे हटा हूँ, माँ तुम्हारी ही शपथ मै आज इंचों  में कटा हूँ;
एक गोली वक्ष पर कुछ देर पहले ही लगी है, माँ कसम जो दी थी तुमने आज मैंने पूर्ण की है;
तो छा रहा है सामने लो आँख के आगे अँधेरा , पर उसी में दिख रहा है माँ मुझे नूतन सवेरा;
कह रहे हैं शत्रु भी की जिस तरह मै शैदा हुआ हूँ, लग रहा है सिंघनी की कोख से पैदा हुआ हूँ ;
तो ये ना समझो माँ की चिर नींद लेने जा रहा हूँ, मैं तुम्हारी कोख से फिर जन्म लेने आ रहा हूँ;

फिर पिता को लिखता है... 
मैं तुम्हे बचपन में ही पहले बहुत दुःख दे चूका हूँ, और कन्धों पर खड़े हो आसमान सर ले चुका हूँ;
तुम सदा कहते न थे ये ऋण तुझे भरना पड़ेगा, एक दिन कन्धों पर मुझको ले तुझे चलना पड़ेगा;
पर पिता मैं भार अपना तनिक हल्का कर ना पाया, तुम मुझे करना क्षमा मैं पितृ ऋण को भर न पाया;
ओ पिता ये प्रश्न मुझको आज तक भी खा रहा है, आज भी यह सूत तुम्हारे कन्धों पर ही जा रहा है;

उसके बाद भाई को लिखता है...
सुन अनुज रणवीर गोली बांह में जब आ समाई, ओ मेरी बायीं भुजा उस वक़्त तेरी याद आयी;
मैं तुझे बाँहों से अब आकाश दे सकता नहीं हूँ, लौट कर भी आऊंगा विश्वास दे सकता नहीं हूँ;
पर अनुज विश्वास रखना मैं नहीं थक कर पडूंगा, तुम भरोसा पूर्ण रखना सांस अंतिम तक लड़ूंगा;
अब तुम्हीको सौपता हूँ बस बहिन का ध्यान रखना, जब पडे उसको जरुरत वक़्त पर सम्मान करना;
तुम उसे कहना की रक्षापर्व  जब भी आएगा, भाई अम्बर में नजर आशीष देता आएगा;

अंत में पत्नी से कहता है... 
अंत में तुमसे प्रिये एमी आज भी कुछ मांगता हूँ, है कठिन देना मगर निष्ठुर हृदय हो मांगता हूँ;
कि तुम अमर सौभाग्य की बिंदिया सदा माथे सजाना, हाथ में चूड़ी पहन कर पाँव  में मेहंदी सजाना;
तुम नहीं वैधव्य की प्रतिमूर्तियों की साधिका हो, तुम अमर बलिदान की पुस्तक की पहली भूमिका हो;
जानता हूँ बालकों के प्रश्न कुछ सुलझे ना होंगे, सैकड़ों प्रश्न होंगे जिनमे वो उलझे तो होंगे;
पूछते होंगे की पापा हैं कहा कब आएंगे, और हमको साथ ले कर घूमने कब जायेंगे;
पापा हमको छोड़ कर जाने कहा बैठे हुए हैं, क्या उन्हें मालूम है कि उनसे हम रूठे हुए हैं;
तो तुम उन्हें समझाना कि जिद पे अड़ जाते नहीं हैं, ज्यादा जिद करते हैं उनके पापा घर आते नहीं हैं;
सप्तपद की यात्रा से तुम मेरी अर्धांगिनी हो, सात जन्मों तक बाजोगी तुम अमर विरहाग्नि हो;
इसलिए अधिकार तुमसे बिन बताये ले रहा हूँ, मांग का सिंदूर तेरा मातृभूमि को दे रहा हूँ..।

Thank you Vineet Chauhan, you made me cry with this poem...