Thursday, May 19, 2022

फरिश्ते

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ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित युवा सेना के मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।

"आपका बेटा आया है," उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा।

बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को बार बार दोहराना पड़ा।

दिल के दौरे के दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।

युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया।

मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वज उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।

इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सके।

"आपका धन्यवाद बहन" ये बोलकर मेजर ने एक विनम्र स्वीकृति का पालन किया।

सारी रात, वो जवान मेजर वहां खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा, बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े पकड़े, उन्हें स्नेह,प्यार और ताकत के अनेको शब्द बोलते बोलते, संयम देते देते।

बीच बीच मे बहुत बार नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।

जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने और अस्पताल के रात के शोर शराबे से बेखबर ही रहा। बस यूँही हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजे, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पा रहा था।

उसने मेजर को हरदम बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द बुदबुदाते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, रात भर केवल अपने बेटे को कसकर पकड़ रखा था।

भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया।

पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया ...

अंत में, जब नर्से लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा-
"कौन था वो आदमी?"

नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे," उसने जवाब दिया।

"नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"

"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"

"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है, और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"
 
नर्स सुनती रही, उलझन में।
 
"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"

"तो फिर आपके यहाँ अस्पताल आने का कारण?", नर्स ने उससे पूछा।

"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"

'लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।'

दोनो कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता।

दोस्तो जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, बस साथ बने रहें, अंत तक। आपके बोल,उत्साह,आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास की मैं हूँ न ही उसे स्वस्थ करने के लिये काफी है..!

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इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Friday, May 6, 2022

कीचड़ में खिलता कमल

आज मेरा बीएससी के पहले साल के इम्तिहान का नतीजा आया था। सभी छात्र पिछले 2 महीने से इस पल का इंतजार कर रहे थे। जैसा सब को यकीन था कि सुषमा क्लास में अव्वल रहेगी, नतीजा वैसा ही था। 

सुषमा का नाम पहले नंबर पर था लेकिन दूसरे नंबर का नाम उतना ही ज्यादा चौंकाने वाला और उम्मीद के उलट था। यह नाम था जय का। जय ने अपने 3 साथियों के साथ, जो पिछले 2 सालों से पहले साल में ही फेल हो रहे थे, अपनी इमेज इस तरह की बना ली थी कि कालेज की कोई भी लड़की, चाहे वह सीनियर हो या क्लासमेट, उन का नाम सुन कर ही घबरा जाती थीं। 

कालेज में आने के बावजूद जय और उस के वे साथी कभी भी क्लास अटैंड नहीं करते थे। हां, इतना जरूर था, प्रैक्टिकल की क्लास वे कभी मिस नहीं करते थे। वैसे, इस बार जय के तीनों साथी भी पास हो गए थे, पर वे सभी ज्यादा नंबर नहीं लाए थे।

जय का इस तरह दूसरा नंबर पाना किसी के भी गले नहीं उतर पा रहा था, जबकि हकीकत यह थी कि जय ने इस के लिए खूब मेहनत की थी। जय के पिता पास के किसी गांव में रेवैन्यू अफसर थे और वे चाहते थे कि जय को पढ़ाई के लिए बढि़या माहौल मिले जो उस के भविष्य के लिए अच्छा हो। इसी वजह से जय घरपरिवार से अलग रह कर इस छोटे से शहर में पढ़ाई कर रहा था।

जय के घर से आते समय पिता ने उसे कड़े शब्दों में चेतावनी दे रखी थी कि अगर इम्तिहान में अच्छे नंबर नहीं आए तो उसे गांव में रह कर पढ़ाई करनी होगी। जय ने अपना दैनिक कार्यक्रम इस तरह बनाया हुआ था कि वह रात में 12 बजे से 3 बजे तक एकांत में ईमानदारी से पढ़ाई करता था। यही वजह थी कि वह दिनभर आवारागर्दी करने के बाद इतने अच्छे नंबरों से पास हो गया था।

चूंकि यह बात सभी छात्रों को मालूम नहीं थी, इसी वजह से न सिर्फ क्लासमेट बल्कि टीचिंग स्टाफ भी यही मान रहा था कि या तो जय का कोई रिश्तेदार यूनिवर्सिटी में रसूख वाले पद पर है जिस ने उसे फायदा पहुंचाया है या उस ने जम कर नकल की है।

जय भी इन बातों से अनजान नहीं था, पर उस ने कभी इन बातों पर बवाल नहीं किया था।
रिजल्ट अच्छा आया तो जय के ग्रुप की शरारतें भी बढ़ गईं। अब तो किसी भी लड़की पर फब्तियां कसना, घर तक पीछा करना, साइकिल की हवा निकाल देना, गाडि़यों के सीट कवर फाड़ देना जैसे काम उन के खास शगल बन गए थे।

किसी साधारण छात्र का मामला होता तो प्रिंसिपल तुरंत अपना फैसला सुना देते, पर यहां जय जैसे एक पोजीशन होल्डर का भी नाम जुड़ा हुआ था, इसलिए वे मामले की तह तक जाना चाहते थे।

प्रिंसिपल साहब ने जय समेत चारों छात्रों को मिलने का फरमान जारी कर दिया। जैसी उम्मीद थी चारों में से कोई भी मिलने नहीं पहुंचा। कड़े शब्दों के साथ दोबारा फरमान जारी हुआ। इस बार न आने की दशा में घर पर सूचना भेजने की बात लिखी गई थी।

जय के बाकी तीनों साथी तो तय समय पर प्रिंसिपल के औफिस पहुंच गए, पर जय फिर भी नहीं पहुंचा। तीनों को भविष्य में शरारत न करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया।

जय के न आने पर प्रिंसिपल साहब ने खुद तफतीश करने का फैसला लिया। टाइम टेबल के मुताबिक उस समय जय की जंतु विज्ञान की कक्षा चल रही थी। प्रिंसिपल साहब ने देखा कि वह पूरी तल्लीनता से अपने मैटीरियल की पहचान कर के अच्छी ड्राइंग के साथ अपनी कौपी पर उतार रहा था, जबकि ज्यादातर छात्र या तो अपने किसी साथी से या अपने टीचर से पूछ रहे थे।

प्रिंसिपल साहब ने उसे डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा। वे वहीं लैबोरेटरी में बैठ कर कक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगे। जब सभी छात्र बाहर जाने लगे तो प्रिंसिपल साहब ने जय को वहीं रोक लिया।

बाहर निकले सभी लोगों में एक ही चर्चा थी कि अब जय को कालेज से बाहर कर दिया जाएगा। लड़कियां खासतौर पर खुश थीं।

जय, मुझे अपनी प्रैक्टिकल कौपी दिखाओ,’’ प्रिंसिपल साहब कुछ कड़े व गंभीर लहजे में बोले

‘‘लीजिए सर,’’ जय कौपी बढ़ाते हुए बोला

चूंकि प्रिंसिपल साहब खुद भी इसी विषय को पढ़ चुके थे, इसलिए उन्हें समझने में जरा भी परेशानी नहीं हुई। उलटे जय की साफसुथरी ड्राइंग और खुद के बनाए नोट्स ने उन को काफी प्रभावित किया। कौपी समय पर चैक भी कराई हुई थी।
यह देख कर प्रिंसिपल साहब खुश भी हो गए, क्योंकि इस तरह के ज्यादातर छात्र साल के आखिर में अपना काम खानापूरी के लिए ही चैक कराते हैं

‘‘2-2 नोटिस देने के बाद भी तुम मिलने नहीं आए. इस का मतलब समझते हो? तुम अपनेआप को बड़ा तीसमारखां समझते हो? जानते हो, तुम्हारे इस काम के लिए तुम्हें कालेज से निकाला भी जा सकता है,’’ प्रिंसिपल साहब सपाट लहजे में बोले

‘‘जी, मैं जानता हूं कि मैंने आप के और्डर को नहीं माना. लेकिन उस के पीछे वजह सिर्फ इतनी थी कि मैं आप को अपनी असलियत का परिचय देना चाहता था,’’ जय नरम लहजे में बोला

‘‘असलियत? कैसी असलियत?’’ प्रिंसिपल साहब ने हैरानी से जय की तरफ देखते हुए पूछा

‘‘सर, हर साल जन्मदिन पर पिताजी मुझे कुछ न कुछ उपहार देते आए हैं। पिछले साल मेरा 18वां जन्मदिन था। मैं कालेज में एडमिशन लेने की तैयारी कर रहा था। तब पिताजी ने मुझे समझाया और बताया था कि अब मेरा बचपना खत्म हो चुका है और मुझे गंभीरता से अपने और समाज के बारे में सोचना चाहिए।

‘‘मैं तो हमेशा से ही अच्छा छात्र रहा हूं। इसी वजह से उन्हें मेरे भविष्य की चिंता ज्यादा नहीं थी पर वे चाहते थे कि मैं समाज के लिए कुछ ठोस काम करूं।

ज्यादा नहीं तो कम से कम किसी एक इनसान को तो खुशहाल जिंदगी दे सकूं।
‘‘पिताजी की इस इच्छा को मैं ने व्रत के रूप में लिया और इन 3 साथियों को, जो पिछले 2 सालों से फर्स्ट ईयर में फेल हो रहे थे, को एक मिशन के रूप में लिया।

 जाहिर है कि परिवार के साथ रह कर मैं अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सकता था, इसीलिए घर से दूर कमरा ले कर यहां रहता हूं। एक दिन में मैं इन की आदतें नहीं बदल सकता था, इसीलिए इन्हीं के रंग में रंग कर इन्हें सुधारने की कोशिशें शुरू कर दीं।

‘‘मैं ने कुछ कहावतों को अपने मिशन का आधार बनाया, जैसे अगर नाले की सफाई करनी हो तो गंदगी में उतरना ही पड़ता है या लोहे को लोहा काटता है।

नतीजा आप के सामने है।
‘‘सर, जो 3 लोग पिछले 2 सालों से फेल हो रहे थे, इस बार संतोषजनक ढंग से पास हो गए हैं। उन लोगों जैसा बनने के लिए मुझे थ्योरी की क्लासें छोड़नी पड़ती हैं। उन तीनों को यह बात मालूम नहीं है कि मैं इस तरह के किसी मिशन पर हूं।

जहां तक लड़कियों को छेड़ने या परेशान करने की बात है तो 2 साल पहले तक ये तीनों किसी भी लड़की का दुपट्टा खींच कर भाग जाने, पैन से स्याही छिड़क कर उन के कपड़े खराब करने या धक्कामुक्की करने जैसे काम कर के खुश होते थे, पर अब धीरेधीरे उन लोगों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। 

अब उन की आदतें कमैंट्स पास करने तक ही सिमट गई हैं और मुझे यकीन है कि कालेज से पास आउट होने पर वे भी दूसरे छात्रों की तरह इज्जत के साथ ही जाएंगे। तीनों की अच्छी नौकरी लग जाने तक मेरा काम पूरा नहीं होगा इसलिए इन तीनों का साथ मैं कतई नहीं छोड़ सकता"

प्रिंसिपल साहब और उन के साथ बैठे टीचरों में से किसी को भी इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी

‘‘बहुत अच्छा जय…’’ प्रिंसिपल साहब खड़े हो कर उस का कंधा थपथपाते हुए बोले, ‘‘मुझे अपने रिटायर होने के बाद भी इस बात का गर्व रहेगा कि मैं एक ऐसे कालेज का प्रिंसिपल था जहां तालीम न सिर्फ अच्छा आदमी बनने को कहती थी, बल्कि अच्छे आदमी के जरीए अच्छा इनसान भी बनाती थी

‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारे पूरे ग्रुप को शुभकामनाएं देता हूं। मुझे भविष्य के नतीजे जानने की उत्सुकता रहेगी.’’
साथ बैठे दोनों टीचरों ने भी सहमति और सम्मान में सिर हिलाया

आज तकरीबन 6 साल बाद जय प्रिंसिपल साहब के घर जा रहा था। वैसे, प्रिंसिपल साहब बीचबीच में बुला कर जय से रिपोर्ट लेते रहते थे पर पिछले 4 सालों से मतलब रिटायरमैंट के बाद से उन का कोई संपर्क नहीं था

डोरबैल बजाने पर प्रिंसिपल साहब ने ही दरवाजा खोला.
‘‘सर, मैं जय,’’ कहते हुए उस ने झुक कर प्रिंसिपल साहब के पैर छू लिए

‘‘अरे, तुम्हें परिचय देने की क्या जरूरत है। क्या मैं तुम्हें पहचानता नहीं और सुनाओ, कैसे आना हुआ? और तुम्हारा मिशन कितना कामयाब हुआ?’’ प्रिंसिपल साहब ने अपनेपन से आशीर्वाद देते हुए पूछा

‘‘सर, आप के आशीर्वाद से मैं अपने मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहा हूं। उन तीनों में से जो शारीरिक गठन में सब से अच्छा था, उसे वन विभाग में सहायक वन विस्तार अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई है।

दूसरा शिक्षा विभाग में मिडिल स्कूल में टीचर बन गया है और तीसरे ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना में कर्ज ले कर एक छोटी सी फैक्टरी खोल ली है और अब कुछ लोगों को रोजगार भी दे रहा है

‘‘मैं ने खुद एमएससी अव्वल नंबर से पास की है। राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा व साक्षात्कार पास करने के बाद आज मेरा चयन डिप्टी कलक्टर के रूप में हो गया है, इसीलिए मैं आप का आशीर्वाद लेने आया हूं’’

जिंदगीभर लैक्चर देने वाले प्रिंसिपल साहब के पास आज शब्दों का अकाल पड़ गया था। वे सिर्फ गर्व के साथ जय के सिर पर हाथ फेर रहे थे।


इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Monday, May 2, 2022

पुत्र का पत्र पिता के नाम..!

पुत्र अमेरिका में जॉब करता है। 
उसके माँ बाप छोटे शहर में रहते हैं।
अकेले बुजुर्ग हैं, बीमार हैं, लाचार हैं।
जहां पुत्र की आवश्यकता है। वहां पैसा भी काम नहीं आता। 
पुत्र वापस आने की बजाय पिता जी को एक पत्र लिखता है। 

 पुत्र का पत्र पिता के नाम..!

पूज्य पिताजी!

आपके आशीर्वाद से आपकी भावनाओं इच्छाओं के अनुरूप मैं, अमेरिका में व्यस्त हूं।
यहाँ पैसा, बंगला, साधन सुविधा सब हैं, नहीं है तो केवल समय।

आपसे मिलने का बहुत मन करता है। चाहता हूं,
आपके पास बैठकर बातें करता रहूं हूँ।
आपके दुख दर्द को बांटना चाहता हूँ,

परन्तु क्षेत्र की दूरी,
बच्चों के अध्ययन की मजबूरी,
कार्यालय का काम करना भी जरूरी,
क्या करूँ? कैसे बताऊँ ?
मैं चाह कर भी स्वर्ग जैसी जन्म भूमि
और देव तुल्य माँ बाप के पास आ नहीं सकता।

पिताजी।!
मेरे पास अनेक सन्देश आते हैं -
"माता-पिता जीवन भर अनेक कष्ट सह कर भी बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाते हैं, और बच्चे मां-बाप को छोड़ विदेश चले जाते हैं,

पुत्र, संवेदनहीन होकर माता-पिता के किसी काम नहीं आते हैं। "

पर पिताजी,
मैं बचपन मे कहाँ जानता था इंजीनियरिंग क्या होती है?
मुझे क्या पता था कि पैसे की कीमत क्या होती है?
मुझे कहाँ पता था कि अमेरिका कहाँ है ? 
योग्यता नाम पैसा सुविधा और अमेरिका तो बस, आपकी गोद में बैठ कर ही समझा था न?

आपने ही मंदिर न भेजकर कॉन्वेंट स्कूल भेजा,
खेल के मैदान में नहीं कोचिंग भेजा,
कभी आस पडोस के बच्चों से दोस्ती नहीं करने दी
आपने अपने मन में दबी इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन रात समझाया कि इंजीनियरिंग /पैसा /पद/ रिश्तेदारों में नाम की वैल्यू क्या होती है,

माँ ने भी दूध पिलाते हुये रोज दोहराया की ,
मेरा राजा बेटा बड़ा आदमी बनेगा खुब पैसा कमाऐगा,
गाड़ी बंगला होगा हवा में उड़ेगा कहा था।
मेरी लौकिक उन्नति के लिए,
जाने कितने मंदिरों में घी के दीपक जलाये थे।।

मेरे पूज्य पिताजी!
मैं बस आपसे इतना पूछना चाहता हूं कि,

संवेदना शून्य मेरा जीवन आपका ही बनाया हुआ है
 
मैं आपकी सेवा नहीं कर पा रहा,
होते हुऐ भी आपको पोते पोती से खेलने का सुख नहीं दे पा रहा
मैं चाहकर भी पुत्र धर्म नहीं निभा पा रहा,
मैं हजारों किलोमीटर दूर बंगले गाडी और जीवन की हर सुख सुविधाओं को भोग रहा हूं
आप, उसी पुराने मकान में वही पुराना अभावग्रस्त जीवन जी रहे हैं
क्या इन परिस्थितियों का सारा दोष सिर्फ़ मेरा है?

आपका पुत्र,
  ***

अब यह फैंसला हर माँ बाप को करना है कि अपना पेट काट काट कर, तकलीफ सह कर, अपने सब शौक समाप्त करके ,बच्चों के सुंदर भविष्य के सपने क्या इन्हीं दिनों के लिये देखते हैं?

क्या वास्तव में हम कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं.....?????
सम सामयिक चिंतन 🙏


इन्टरनेट से सधन्यवाद...