Thursday, March 27, 2014

वह महान इंजिनियर

तब देश में अंग्रेजों का शासन था। एक दिन बंबई मेल यात्रियों से खचाखच भरी हुई तेज गति से दौड़ी जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे। पर एक डिब्बे में सांवले रंग का धोती-कुर्ता पहने एक भारतीय यात्री गुमसुम बैठा था। सभी अंग्रेज यात्री उसे बेवकूफ समझ कर उस पर व्यंग्य कर रहे थे। कुछ देर बाद अचानक उस व्यक्ति ने उठ कर रेल की जंजीर खींच दी। गाड़ी की रफ्तार धीमी पड़ गई। उस व्यक्ति को अन्य यात्री बुरा-भला कहने लगे।

जब रेल रुकी तो गार्ड अंदर आया और उसने पूछा कि जंजीर किसने और क्यों खींची है? इस पर वह व्यक्ति बोला, 'जंजीर मैंने खींची है। मुझे ऐसा अनुमान हुआ कि यहां से लगभग एक फर्लांग दूर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।' गार्ड हैरानी से उस व्यक्ति को देखते हुए बोला, 'आपको कैसे पता लगा?' वह व्यक्ति बोला, 'दरअसल गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया था। इससे प्रतिध्वनित होने वाली आवाज से मुझे खतरे का आभास हो गया।'

गार्ड उस व्यक्ति के साथ कुछ अन्य यात्रियों को लेकर एक फर्लांग से आगे पहुंचा और यह देखकर गार्ड के साथ अन्य लोग भी दंग रह गए कि वास्तव में एक जगह रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए थे और नट-बोल्ट अलग पड़े थे। अब सभी लोग उस व्यक्ति की सराहना करने लगे। गार्ड ने उससे पूछा, 'आप कौन हैं? आपका क्या नाम है?' वह व्यक्ति सहज भाव से बोला, 'मैं एक इंजिनियर हूं, और मेरा नाम डॉ. एम. विश्वेश्वरैया है।' नाम सुनते ही सब सन्न रह गए। डॉ. एम. विश्वेश्वरैया का नाम देश के महान इंजिनियरों में गर्व से लिया जाता है।

नवभारत टाइम्स से साभार