Sunday, December 11, 2022

नाव का छेद

एक आदमी को एक नाव पेंट करने के लिए कहा गया। वह अपना पेंट और ब्रश लाया और नाव को चमकीले लाल रंग से रंगना शुरू किया, जैसा कि मालिक ने उससे कहा था।

पेंटिंग करते समय, उसने पतवार में एक छोटा सा छेद देखा और चुपचाप उसकी मरम्मत की।

जब उसने पेंटिंग पूरी की, तो उसने अपना पैसा लिया और चला गया।

अगले दिन, नाव का मालिक पेंटर के पास आया और उसे एक अच्छा चेक भेंट किया, जो पेंटिंग के भुगतान से कहीं अधिक था।

पेंटर को आश्चर्य हुआ और उसने कहा, "आपने मुझे नाव को पेंट करने के लिए पहले ही भुगतान कर दिया है सर!"

"लेकिन यह पेंट जॉब के लिए नहीं है। यह नाव में छेद की मरम्मत के लिए है।”

"आह! लेकिन यह इतनी छोटी सी सेवा थी... निश्चित रूप से यह मुझे इतनी छोटी सी चीज के लिए इतनी अधिक राशि देने के लायक नहीं है।"

“मेरे प्यारे दोस्त, तुम नहीं समझे। आपको बताते हैं क्या हुआ था:

“जब मैंने तुमसे नाव को पेंट करने के लिए कहा, तो मैं छेद का उल्लेख करना भूल गया।

“जब नाव सूख गई, तो मेरे बच्चे नाव ले गए और मछली पकड़ने की यात्रा पर निकल गए।

"वे नहीं जानते थे कि एक छेद था। मैं उस समय घर पर नहीं था।

"जब मैं वापस लौटा और देखा कि वे नाव ले गए हैं, तो मैं हताश हो गया क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में छेद था।

“मेरी राहत और खुशी की कल्पना कीजिए जब मैंने उन्हें मछली पकड़ने से लौटते देखा।

“फिर, मैंने नाव की जांच की और पाया कि आपने छेद की मरम्मत की थी!

"आप देखते हैं, अब, आपने क्या किया? आपने मेरे बच्चों की जान बचाई! मेरे पास आपके 'छोटे' अच्छे काम का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है।

तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन, कब या कैसे, मदद करना जारी रखें, बनाए रखें, आँसू पोंछें, ध्यान से सुनें, और ध्यान से सभी 'लीक' की मरम्मत करें। आप कभी नहीं जानते कि कब किसी को हमारी आवश्यकता होती है, या कब परमेश्वर किसी के लिए सहायक और महत्वपूर्ण होने के लिए हमारे लिए एक सुखद आश्चर्य रखता है।

आपने कई लोगों के लिए कई 'नाव छेद' की मरम्मत की हो सकती है बिना यह जाने कि आपने कितने लोगों की जान बचाई है। ❤️

कुछ अलग करें... आप सबसे अच्छे बनें...

आपका दिन मंगलमय हो🌿

इन्टरनेट से सधन्यवाद..!

Monday, June 6, 2022

प्रभु कृपा

प्रभु कृपा दिखाई नही देती लेकिन होती जरूर है

एक औरत रोटी बनाते बनाते "ॐ नम: शिवाय " का जाप कर रही थी...
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अलग से पूजा का समय कहाँ निकाल पाती थी बेचारी, तो बस काम करते करते ही!!
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एकाएक धड़ाम से जोरों की आवाज हुई और साथ मे दर्दनाक चीख, कलेजा धक से रह गया...
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जब आंगन में दौड़ कर झांकी तो आठ साल का चुन्नू चित्त पड़ा था, खुन से लथपथ।
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मन हुआ दहाड़ मार कर रोये। परंतु घर मे उसके अलावा कोई था नही, रोकर भी किसे बुलाती, फिर चुन्नू को संभालना भी तो था।
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दौड़ कर नीचे गई तो देखा चुन्नू आधी बेहोशी में माँ माँ की रट लगाए हुए है।
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अंदर की ममता ने आंखों से निकल कर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया।
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फिर 10 दिन पहले करवाये अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बावजूद ना जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी कि चुन्नू को गोद मे उठा कर पड़ोस के नर्सिंग होम की ओर दौड़ी।
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रास्ते भर भगवान् को जी भर कर कोसती रही, बड़बड़ाती रही, हे महादेव क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा, जो मेरे ही बच्चे को..!!
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खैर डॉक्टर साहब मिल गए और समय पर इलाज होने पर चुन्नू बिल्कुल ठीक हो गया।
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चोटें गहरी नही थी, ऊपरी थीं तो कोई खास परेशानी नही हुई...
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रात को घर पर जब सब टीवी देख रहे थे तब उस औरत का मन बेचैन था।
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भगवान् से विरक्ति होने लगी थी। एक मां की ममता प्रभुसत्ता को चुनौती दे रही थी।
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उसके दिमाग मे दिन की सारी घटना चलचित्र की तरह चलने लगी। कैसे चुन्नू आंगन में गिरा की एकाएक उसकी आत्मा सिहर उठी,
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कल ही तो पुराने चापाकल का पाइप का टुकड़ा आंगन से हटवाया है, ठीक उसी जगह था जहां चिंटू गिरा पड़ा था। अगर कल मिस्त्री न आया होता तो..?
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उसका हाथ अब अपने पेट की तरफ गया जहां टांके अभी हरे ही थे, ऑपरेशन के।
आश्चर्य हुआ कि उसने 20-22 किलो के चुन्नू को उठाया कैसे, कैसे वो आधा किलोमीटर तक दौड़ती चली गयी ?
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फूल सा हल्का लग रहा था चुन्नू। वैसे तो वो कपड़ों की बाल्टी तक छत पर नही ले जा पाती।
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फिर उसे ख्याल आया कि डॉक्टर साहब तो 2 बजे तक ही रहते हैं और जब वो पहुंची तो साढ़े 3 बज रहे थे,
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उसके जाते ही तुरंत इलाज हुआ, मानो किसी ने उन्हें रोक रखा था।
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उसका सर प्रभु चरणों मे श्रद्धा से झुक गया। अब वो सारा खेल समझ चुकी थी। मन ही मन प्रभु से अपने शब्दों के लिए क्षमा मांगी।
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तभी टीवी पर ध्यान गया तो प्रवचन आ रहा था..
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प्रभु कहते हैं, मैं तुम्हारे आने वाले संकट रोक नहीं सकता, लेकिन तुम्हे इतनी शक्ति दे सकता हूँ कि तुम आसानी से उन्हें पार कर सको, तुम्हारी राह आसान कर सकता हूँ। बस धर्म के मार्ग पर चलते रहो।

श्री राम चरित मानस में भी तुलसीदास जी ने लिखा है..

*तब तब प्रभु धरि बिबिध शरीरा।*
      *हरिहिं कृपानिधी सज्जन पीरा।।*

जब-जब भक्तो पर संकट आता है,,प्रभु विभिन्न रूपो में आकर अपने भक्तों का संकट हरते हैं..अक्सर लोग कहते भी है आज तो उन्होंने समय पे आकर जान बचा ली,,,कोन आया समय पर वही,,जब जब प्रभु धरि विविध शरीरा.. वो किसी भी रूप में आ सकता है..!!


🙏🙏🏽🙏🏾जय श्री राधे🙏🏼🙏🏿🙏🏻

इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Thursday, June 2, 2022

व्यापार या दया

हमेशा की तरह दोपहर को सब्जीवाली दरवाजे पर आई और चिल्लाई, चाची, "आपको सब्जियां लेनी हैं?"

माँ हमेशा की तरह अंदर से चिल्लाई, "सब्जियों में क्या-क्या है?"

सब्जीवाली :- ग्वार, पालक, भिन्डी, आलू , टमाटर....

दरवाजे पर आकर माँ ने सब्जी के सिर पर भार देखा और पूछा, "पालक कैसे दिया?"

सब्जीवाली :- दस रुपए की एक गठी।

मां:- पच्चीस रुपए में चार दो।
सब्जीवाली:- चाची नहीं जमेगा।
मां : तो रहने दो।

सब्जीवाली आगे बढ़ गयी, पर वापस आ गई।
सब्जीवाली:- तीस रुपये में चार दूंगी।
मां:- नहीं, पच्चीस रुपए में चार लूंगी।
सब्जीवाली :- चाची बिलकुल नहीं जमेगा...

और वो फिर चली गयी.......

थोड़ा आगे जाकर वापस फिर लौट आई। दरवाजे पर माँ अब भी खड़ी थी, पता था सब्जीवाली फिर लौट कर आएगी। अब सब्जीवाली पच्चीस रुपये में चार देने को तैयार थी।

माँ ने सब्जी की टोकरी उतरने में मदद की, ध्यान से पलक कि चार गठीयाँ परख कर ली और पच्चीस रुपये का भुगतान किया। जैसे ही सब्जीवाली ने सब्जी का भार उठाना शुरू किया, उसे चक्कर आने लगा। माँ ने उत्सुकता से पूछा, "क्या तुमने खाना खा लिया?"

सब्जीवाली:- नई चाची, सब्जियां बिक जाएँ, तो किरना खरीदूंगी, फिर खाना बनाकर खाऊँगी।

माँ: एक मिनट रुको बस यहाँ। 

और फिर माँ ने उसे एक थाली में रोटी, सब्जी, चटनी, चावल और दाल परोस दिया, सब्जीवाली के खाने के बाद पानी दिया और एक केला भी थमाया।

सब्जीवाली धन्यवाद बोलकर चली गयी।

मुझसे नहीं रहा गया। मैंने अपनी माँ से पूछा, *"आपने इतनी बेरहमी से कीमत कम करवाई, लेकिन फिर जितना तुमने बचाया उससे ज्यादा का सब्जीवाली को खिलाया।"*

माँ हँसी और उन्होंने जो कहा वह मेरे दिमाग में आज तक अंकित है एक सीख कि तरह.....

*व्यापार करते समय दया मत करो, किन्तु दया करते समय व्यापर मत करो!*


इन्टरनेट से सधन्यवाद...

                      💞🙏💞

Thursday, May 19, 2022

फरिश्ते

🌱🌱🙂🙂🌱🌱 

ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित युवा सेना के मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।

"आपका बेटा आया है," उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा।

बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को बार बार दोहराना पड़ा।

दिल के दौरे के दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।

युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया।

मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वज उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।

इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सके।

"आपका धन्यवाद बहन" ये बोलकर मेजर ने एक विनम्र स्वीकृति का पालन किया।

सारी रात, वो जवान मेजर वहां खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा, बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े पकड़े, उन्हें स्नेह,प्यार और ताकत के अनेको शब्द बोलते बोलते, संयम देते देते।

बीच बीच मे बहुत बार नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।

जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने और अस्पताल के रात के शोर शराबे से बेखबर ही रहा। बस यूँही हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजे, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पा रहा था।

उसने मेजर को हरदम बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द बुदबुदाते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, रात भर केवल अपने बेटे को कसकर पकड़ रखा था।

भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया।

पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया ...

अंत में, जब नर्से लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा-
"कौन था वो आदमी?"

नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे," उसने जवाब दिया।

"नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"

"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"

"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है, और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"
 
नर्स सुनती रही, उलझन में।
 
"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"

"तो फिर आपके यहाँ अस्पताल आने का कारण?", नर्स ने उससे पूछा।

"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"

'लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।'

दोनो कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता।

दोस्तो जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, बस साथ बने रहें, अंत तक। आपके बोल,उत्साह,आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास की मैं हूँ न ही उसे स्वस्थ करने के लिये काफी है..!

 🌱🌱🕉️🕉️🌱🌱


इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Friday, May 6, 2022

कीचड़ में खिलता कमल

आज मेरा बीएससी के पहले साल के इम्तिहान का नतीजा आया था। सभी छात्र पिछले 2 महीने से इस पल का इंतजार कर रहे थे। जैसा सब को यकीन था कि सुषमा क्लास में अव्वल रहेगी, नतीजा वैसा ही था। 

सुषमा का नाम पहले नंबर पर था लेकिन दूसरे नंबर का नाम उतना ही ज्यादा चौंकाने वाला और उम्मीद के उलट था। यह नाम था जय का। जय ने अपने 3 साथियों के साथ, जो पिछले 2 सालों से पहले साल में ही फेल हो रहे थे, अपनी इमेज इस तरह की बना ली थी कि कालेज की कोई भी लड़की, चाहे वह सीनियर हो या क्लासमेट, उन का नाम सुन कर ही घबरा जाती थीं। 

कालेज में आने के बावजूद जय और उस के वे साथी कभी भी क्लास अटैंड नहीं करते थे। हां, इतना जरूर था, प्रैक्टिकल की क्लास वे कभी मिस नहीं करते थे। वैसे, इस बार जय के तीनों साथी भी पास हो गए थे, पर वे सभी ज्यादा नंबर नहीं लाए थे।

जय का इस तरह दूसरा नंबर पाना किसी के भी गले नहीं उतर पा रहा था, जबकि हकीकत यह थी कि जय ने इस के लिए खूब मेहनत की थी। जय के पिता पास के किसी गांव में रेवैन्यू अफसर थे और वे चाहते थे कि जय को पढ़ाई के लिए बढि़या माहौल मिले जो उस के भविष्य के लिए अच्छा हो। इसी वजह से जय घरपरिवार से अलग रह कर इस छोटे से शहर में पढ़ाई कर रहा था।

जय के घर से आते समय पिता ने उसे कड़े शब्दों में चेतावनी दे रखी थी कि अगर इम्तिहान में अच्छे नंबर नहीं आए तो उसे गांव में रह कर पढ़ाई करनी होगी। जय ने अपना दैनिक कार्यक्रम इस तरह बनाया हुआ था कि वह रात में 12 बजे से 3 बजे तक एकांत में ईमानदारी से पढ़ाई करता था। यही वजह थी कि वह दिनभर आवारागर्दी करने के बाद इतने अच्छे नंबरों से पास हो गया था।

चूंकि यह बात सभी छात्रों को मालूम नहीं थी, इसी वजह से न सिर्फ क्लासमेट बल्कि टीचिंग स्टाफ भी यही मान रहा था कि या तो जय का कोई रिश्तेदार यूनिवर्सिटी में रसूख वाले पद पर है जिस ने उसे फायदा पहुंचाया है या उस ने जम कर नकल की है।

जय भी इन बातों से अनजान नहीं था, पर उस ने कभी इन बातों पर बवाल नहीं किया था।
रिजल्ट अच्छा आया तो जय के ग्रुप की शरारतें भी बढ़ गईं। अब तो किसी भी लड़की पर फब्तियां कसना, घर तक पीछा करना, साइकिल की हवा निकाल देना, गाडि़यों के सीट कवर फाड़ देना जैसे काम उन के खास शगल बन गए थे।

किसी साधारण छात्र का मामला होता तो प्रिंसिपल तुरंत अपना फैसला सुना देते, पर यहां जय जैसे एक पोजीशन होल्डर का भी नाम जुड़ा हुआ था, इसलिए वे मामले की तह तक जाना चाहते थे।

प्रिंसिपल साहब ने जय समेत चारों छात्रों को मिलने का फरमान जारी कर दिया। जैसी उम्मीद थी चारों में से कोई भी मिलने नहीं पहुंचा। कड़े शब्दों के साथ दोबारा फरमान जारी हुआ। इस बार न आने की दशा में घर पर सूचना भेजने की बात लिखी गई थी।

जय के बाकी तीनों साथी तो तय समय पर प्रिंसिपल के औफिस पहुंच गए, पर जय फिर भी नहीं पहुंचा। तीनों को भविष्य में शरारत न करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया।

जय के न आने पर प्रिंसिपल साहब ने खुद तफतीश करने का फैसला लिया। टाइम टेबल के मुताबिक उस समय जय की जंतु विज्ञान की कक्षा चल रही थी। प्रिंसिपल साहब ने देखा कि वह पूरी तल्लीनता से अपने मैटीरियल की पहचान कर के अच्छी ड्राइंग के साथ अपनी कौपी पर उतार रहा था, जबकि ज्यादातर छात्र या तो अपने किसी साथी से या अपने टीचर से पूछ रहे थे।

प्रिंसिपल साहब ने उसे डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा। वे वहीं लैबोरेटरी में बैठ कर कक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगे। जब सभी छात्र बाहर जाने लगे तो प्रिंसिपल साहब ने जय को वहीं रोक लिया।

बाहर निकले सभी लोगों में एक ही चर्चा थी कि अब जय को कालेज से बाहर कर दिया जाएगा। लड़कियां खासतौर पर खुश थीं।

जय, मुझे अपनी प्रैक्टिकल कौपी दिखाओ,’’ प्रिंसिपल साहब कुछ कड़े व गंभीर लहजे में बोले

‘‘लीजिए सर,’’ जय कौपी बढ़ाते हुए बोला

चूंकि प्रिंसिपल साहब खुद भी इसी विषय को पढ़ चुके थे, इसलिए उन्हें समझने में जरा भी परेशानी नहीं हुई। उलटे जय की साफसुथरी ड्राइंग और खुद के बनाए नोट्स ने उन को काफी प्रभावित किया। कौपी समय पर चैक भी कराई हुई थी।
यह देख कर प्रिंसिपल साहब खुश भी हो गए, क्योंकि इस तरह के ज्यादातर छात्र साल के आखिर में अपना काम खानापूरी के लिए ही चैक कराते हैं

‘‘2-2 नोटिस देने के बाद भी तुम मिलने नहीं आए. इस का मतलब समझते हो? तुम अपनेआप को बड़ा तीसमारखां समझते हो? जानते हो, तुम्हारे इस काम के लिए तुम्हें कालेज से निकाला भी जा सकता है,’’ प्रिंसिपल साहब सपाट लहजे में बोले

‘‘जी, मैं जानता हूं कि मैंने आप के और्डर को नहीं माना. लेकिन उस के पीछे वजह सिर्फ इतनी थी कि मैं आप को अपनी असलियत का परिचय देना चाहता था,’’ जय नरम लहजे में बोला

‘‘असलियत? कैसी असलियत?’’ प्रिंसिपल साहब ने हैरानी से जय की तरफ देखते हुए पूछा

‘‘सर, हर साल जन्मदिन पर पिताजी मुझे कुछ न कुछ उपहार देते आए हैं। पिछले साल मेरा 18वां जन्मदिन था। मैं कालेज में एडमिशन लेने की तैयारी कर रहा था। तब पिताजी ने मुझे समझाया और बताया था कि अब मेरा बचपना खत्म हो चुका है और मुझे गंभीरता से अपने और समाज के बारे में सोचना चाहिए।

‘‘मैं तो हमेशा से ही अच्छा छात्र रहा हूं। इसी वजह से उन्हें मेरे भविष्य की चिंता ज्यादा नहीं थी पर वे चाहते थे कि मैं समाज के लिए कुछ ठोस काम करूं।

ज्यादा नहीं तो कम से कम किसी एक इनसान को तो खुशहाल जिंदगी दे सकूं।
‘‘पिताजी की इस इच्छा को मैं ने व्रत के रूप में लिया और इन 3 साथियों को, जो पिछले 2 सालों से फर्स्ट ईयर में फेल हो रहे थे, को एक मिशन के रूप में लिया।

 जाहिर है कि परिवार के साथ रह कर मैं अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सकता था, इसीलिए घर से दूर कमरा ले कर यहां रहता हूं। एक दिन में मैं इन की आदतें नहीं बदल सकता था, इसीलिए इन्हीं के रंग में रंग कर इन्हें सुधारने की कोशिशें शुरू कर दीं।

‘‘मैं ने कुछ कहावतों को अपने मिशन का आधार बनाया, जैसे अगर नाले की सफाई करनी हो तो गंदगी में उतरना ही पड़ता है या लोहे को लोहा काटता है।

नतीजा आप के सामने है।
‘‘सर, जो 3 लोग पिछले 2 सालों से फेल हो रहे थे, इस बार संतोषजनक ढंग से पास हो गए हैं। उन लोगों जैसा बनने के लिए मुझे थ्योरी की क्लासें छोड़नी पड़ती हैं। उन तीनों को यह बात मालूम नहीं है कि मैं इस तरह के किसी मिशन पर हूं।

जहां तक लड़कियों को छेड़ने या परेशान करने की बात है तो 2 साल पहले तक ये तीनों किसी भी लड़की का दुपट्टा खींच कर भाग जाने, पैन से स्याही छिड़क कर उन के कपड़े खराब करने या धक्कामुक्की करने जैसे काम कर के खुश होते थे, पर अब धीरेधीरे उन लोगों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। 

अब उन की आदतें कमैंट्स पास करने तक ही सिमट गई हैं और मुझे यकीन है कि कालेज से पास आउट होने पर वे भी दूसरे छात्रों की तरह इज्जत के साथ ही जाएंगे। तीनों की अच्छी नौकरी लग जाने तक मेरा काम पूरा नहीं होगा इसलिए इन तीनों का साथ मैं कतई नहीं छोड़ सकता"

प्रिंसिपल साहब और उन के साथ बैठे टीचरों में से किसी को भी इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी

‘‘बहुत अच्छा जय…’’ प्रिंसिपल साहब खड़े हो कर उस का कंधा थपथपाते हुए बोले, ‘‘मुझे अपने रिटायर होने के बाद भी इस बात का गर्व रहेगा कि मैं एक ऐसे कालेज का प्रिंसिपल था जहां तालीम न सिर्फ अच्छा आदमी बनने को कहती थी, बल्कि अच्छे आदमी के जरीए अच्छा इनसान भी बनाती थी

‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारे पूरे ग्रुप को शुभकामनाएं देता हूं। मुझे भविष्य के नतीजे जानने की उत्सुकता रहेगी.’’
साथ बैठे दोनों टीचरों ने भी सहमति और सम्मान में सिर हिलाया

आज तकरीबन 6 साल बाद जय प्रिंसिपल साहब के घर जा रहा था। वैसे, प्रिंसिपल साहब बीचबीच में बुला कर जय से रिपोर्ट लेते रहते थे पर पिछले 4 सालों से मतलब रिटायरमैंट के बाद से उन का कोई संपर्क नहीं था

डोरबैल बजाने पर प्रिंसिपल साहब ने ही दरवाजा खोला.
‘‘सर, मैं जय,’’ कहते हुए उस ने झुक कर प्रिंसिपल साहब के पैर छू लिए

‘‘अरे, तुम्हें परिचय देने की क्या जरूरत है। क्या मैं तुम्हें पहचानता नहीं और सुनाओ, कैसे आना हुआ? और तुम्हारा मिशन कितना कामयाब हुआ?’’ प्रिंसिपल साहब ने अपनेपन से आशीर्वाद देते हुए पूछा

‘‘सर, आप के आशीर्वाद से मैं अपने मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहा हूं। उन तीनों में से जो शारीरिक गठन में सब से अच्छा था, उसे वन विभाग में सहायक वन विस्तार अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई है।

दूसरा शिक्षा विभाग में मिडिल स्कूल में टीचर बन गया है और तीसरे ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना में कर्ज ले कर एक छोटी सी फैक्टरी खोल ली है और अब कुछ लोगों को रोजगार भी दे रहा है

‘‘मैं ने खुद एमएससी अव्वल नंबर से पास की है। राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा व साक्षात्कार पास करने के बाद आज मेरा चयन डिप्टी कलक्टर के रूप में हो गया है, इसीलिए मैं आप का आशीर्वाद लेने आया हूं’’

जिंदगीभर लैक्चर देने वाले प्रिंसिपल साहब के पास आज शब्दों का अकाल पड़ गया था। वे सिर्फ गर्व के साथ जय के सिर पर हाथ फेर रहे थे।


इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Monday, May 2, 2022

पुत्र का पत्र पिता के नाम..!

पुत्र अमेरिका में जॉब करता है। 
उसके माँ बाप छोटे शहर में रहते हैं।
अकेले बुजुर्ग हैं, बीमार हैं, लाचार हैं।
जहां पुत्र की आवश्यकता है। वहां पैसा भी काम नहीं आता। 
पुत्र वापस आने की बजाय पिता जी को एक पत्र लिखता है। 

 पुत्र का पत्र पिता के नाम..!

पूज्य पिताजी!

आपके आशीर्वाद से आपकी भावनाओं इच्छाओं के अनुरूप मैं, अमेरिका में व्यस्त हूं।
यहाँ पैसा, बंगला, साधन सुविधा सब हैं, नहीं है तो केवल समय।

आपसे मिलने का बहुत मन करता है। चाहता हूं,
आपके पास बैठकर बातें करता रहूं हूँ।
आपके दुख दर्द को बांटना चाहता हूँ,

परन्तु क्षेत्र की दूरी,
बच्चों के अध्ययन की मजबूरी,
कार्यालय का काम करना भी जरूरी,
क्या करूँ? कैसे बताऊँ ?
मैं चाह कर भी स्वर्ग जैसी जन्म भूमि
और देव तुल्य माँ बाप के पास आ नहीं सकता।

पिताजी।!
मेरे पास अनेक सन्देश आते हैं -
"माता-पिता जीवन भर अनेक कष्ट सह कर भी बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाते हैं, और बच्चे मां-बाप को छोड़ विदेश चले जाते हैं,

पुत्र, संवेदनहीन होकर माता-पिता के किसी काम नहीं आते हैं। "

पर पिताजी,
मैं बचपन मे कहाँ जानता था इंजीनियरिंग क्या होती है?
मुझे क्या पता था कि पैसे की कीमत क्या होती है?
मुझे कहाँ पता था कि अमेरिका कहाँ है ? 
योग्यता नाम पैसा सुविधा और अमेरिका तो बस, आपकी गोद में बैठ कर ही समझा था न?

आपने ही मंदिर न भेजकर कॉन्वेंट स्कूल भेजा,
खेल के मैदान में नहीं कोचिंग भेजा,
कभी आस पडोस के बच्चों से दोस्ती नहीं करने दी
आपने अपने मन में दबी इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन रात समझाया कि इंजीनियरिंग /पैसा /पद/ रिश्तेदारों में नाम की वैल्यू क्या होती है,

माँ ने भी दूध पिलाते हुये रोज दोहराया की ,
मेरा राजा बेटा बड़ा आदमी बनेगा खुब पैसा कमाऐगा,
गाड़ी बंगला होगा हवा में उड़ेगा कहा था।
मेरी लौकिक उन्नति के लिए,
जाने कितने मंदिरों में घी के दीपक जलाये थे।।

मेरे पूज्य पिताजी!
मैं बस आपसे इतना पूछना चाहता हूं कि,

संवेदना शून्य मेरा जीवन आपका ही बनाया हुआ है
 
मैं आपकी सेवा नहीं कर पा रहा,
होते हुऐ भी आपको पोते पोती से खेलने का सुख नहीं दे पा रहा
मैं चाहकर भी पुत्र धर्म नहीं निभा पा रहा,
मैं हजारों किलोमीटर दूर बंगले गाडी और जीवन की हर सुख सुविधाओं को भोग रहा हूं
आप, उसी पुराने मकान में वही पुराना अभावग्रस्त जीवन जी रहे हैं
क्या इन परिस्थितियों का सारा दोष सिर्फ़ मेरा है?

आपका पुत्र,
  ***

अब यह फैंसला हर माँ बाप को करना है कि अपना पेट काट काट कर, तकलीफ सह कर, अपने सब शौक समाप्त करके ,बच्चों के सुंदर भविष्य के सपने क्या इन्हीं दिनों के लिये देखते हैं?

क्या वास्तव में हम कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं.....?????
सम सामयिक चिंतन 🙏


इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Tuesday, April 26, 2022

पिता का अनमोल उपहार

💐💐पिता का अनमोल उपहार💐💐


विवाह के बाद, पहली बार मायके आयी बेटी का स्वागत सप्ताह भर चला।

सम्पूर्ण सप्ताह भर बेटी को जो पसन्द है, वही सब किया गया, वापिस ससुराल जाते समय, पिता ने बेटी को एक अति सुगंधित अगरबत्ती का पुडा दिया, और कहा, की, बेटी तुम जब ससुराल में पूजा करने जाओगी तब यह अगरबत्ती जरूर जलाना,

माँ ने कहा, बिटिया प्रथम बार मायके से ससुराल जा रही है, तो भला कोई अगरबत्ती जैसी चीज देता है ?

 पिता ने झट से जेब मे हाथ डाला और जेब मे जितने भी रुपये थे वो सब बेटी को दे दिए,

ससुराल में पहुंचते ही सासु माँ ने बहु के मात-पिता ने बेटी को बिदाई में क्या दिया यह देखा, तो वह अगरबत्ती का पुडा भी दिखा, सासु माँ ने मुंह बना कर बहु को बोला कि , कल पूजा में यह अगरबत्ती लगा लेना,

 सुबह जब बेटी पूजा करने बैठी तो वो अगरबत्ती का पुडा खोला, उसमे से एक चिट्ठी निकली,

लिखा था...

 "बेटा यह अगरबत्ती स्वतः जलती है, मगर संपूर्ण घर को सुगंधित कर देती है, इतना ही नही , आजु-बाजू के पूरे वातावरण को भी अपनी महक से सुगंधित एवम प्रफुल्लित कर देती है....!!

हो सकता है की तूम कभी पति से कुछ समय के लिए रुठ जाओगी, या कभी अपने सास-ससुरजी से नाराज हो जाओगी, कभी देवर या ननद से भी रूठोगी, कभी तुम्हे किसी से बाते सुननी भी पड़ जाए, या फिर कभी अडोस-पड़ोसियों के वर्तन पर तुम्हारा दिल खट्टा हो जाये, तब तुम मेरी यह भेंट ध्यान में रखना,

अगरबत्ती की तरह जलना, जैसे अगरबत्ती स्वयं जलते हुए पूरे घर और सम्पूर्ण परिसर को सुगंधित और प्रफुल्लित कर ऊर्जा से भरती है, ठीक उसी तरह तुम स्वतः सहन कर तेरे ससुराल को अपना मायका समझ कर सब को अपने व्यवहार और कर्म से सुगंधित और प्रफुल्लित करना....

बेटी चिट्ठी पढ़कर फफकर रोने लगी, सासू मां लपककर आयी, पति और ससुरजी भी पूजा घर मे पहुंचे जहां बहु रो रही थी।

अरे हाथ को चटका लग गया क्या?, ऐसा पति ने पूछा।

"क्या हुआ यह तो बताओ, ससुरजी बोले।
सासूमाँ आजु बाजु के सामान में कुछ है क्या यह देखने लगी,

तो उन्हें पिता द्वारा सुंदर अक्षरों में लिखी हुई चिठ्ठी नजर आयी, चिट्ठी पढ़ते ही उन्होंने बहु को गले से लगा लिया, और चिट्ठी ससुरजी के हाथों में दी, चश्मा ना पहने होने की वजह से, चिट्ठी बेटे को देकर पढ़ने के लिए कहा।

सारी बात समझते ही संपूर्ण घर स्तब्ध हो गया।

सासु माँ बोली अरे, यह चिठ्ठी फ्रेम करानी है , यह मेरी बहु को मिली हुई सबसे अनमोल भेंट है, पूजा घर के बाजू में में ही इसकी फ्रेम होनी चाहिए,

और फिर सदैव वह फ्रेम अपने शब्दों से, सम्पूर्ण घर, और अगल-बगल के वातावरण को अपने अर्थ से महकाती रही, अगरबत्ती का पुडा खत्म होने के बावजूद भी.......

 क्या आप भी ऐसे संस्कार अपनी बेटी को देना चाहेंगे ....
 अगर ठीक लगे तो अपने किसी अजीज को भेजिये ताकि किसी का घर सुगंधित हो सके.
सभी माता पिता को ओर पूर्वजो को समर्पित .. बेटियां दो कुलो को महकाती है!

💐🙏

इन्टरनेट से सधन्यवाद...

Tuesday, March 22, 2022

दान और दया

कल दोपहर घर के सामने छोटे से नीम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर मैं मोबाइल पर बात कर रहा था । 
पेड़ की दूसरी तरफ एक गाय बछड़े का जोड़ा बैठा सुस्ता रहा था और जुगाली भी कर रहा था ।
उतने में एक सब्जी वाला पुकार लगाता हुआ आया ।
उसकी आवाज़ पर गाय के कान खड़े हुए और उसने सब्जी विक्रेता की तरफ देखा। 
तभी पड़ोस से एक महिला आयी और सब्जियाँ खरीदने लगी । 
अंत में मुफ्त में धनियाँ, मिर्ची न देने पर उसने सब्जियाँ वापस कर दी । 
महिला के जाने के बाद सब्जी विक्रेता ने पालक के दो बंडल खोले और गाय बछड़े के सामने डाल दिए...

 मुझे हैरत हुई और जिज्ञासावश उसके ठेले के पास गया । खीरे खरीदे और पैसे देते हुए उससे पूछा कि उसने 5 रुपये की धनियां मिर्ची के पीछे लगभग 50 रुपये के मूल्य की सब्जियों की बिक्री की हानि क्यों की ? 
उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया - भइया जी, यह इनका रोज़ का काम है । 1-2 रुपये के प्रॉफिट पर सब्जी बेच रहा हूँ ।
 इस पर भी फ्री .. न न न ।
मैंने कहा - तो गइया के सामने 2 बंडल पालक क्यों बिखेर दिया ? 
उसने कहा - फ्री की धनियां मिर्ची के बाद भी यह भरोसा नहीं है कि यह कल मेरी प्रतीक्षा करेंगी किन्तु यह गाय बछड़ा मेरा जरूर इंतज़ार करते हैं और भइयाजी, मैं इनको कभी मायूस भी नहीं करता हूँ। 
मेरे ठेले में कुछ न कुछ रहता ही है इनके लिए । 
 मैं इन्हें रोज खिलाता हूँ । 
अक्सर ये हमको यहाँ पेड़ के नीचे बैठी हुई मिलती हैं। 

मुफ्त में उन्हें ही खिलाना चाहिए जो हमारी कद्र करे और जिन्हें हमसे ही अभिलाषा हो।

यह कह कर पुकार लगाते हुए उसने ठेला आगे बढ़ा दिया । मैं उसकी बात से सहमत हूँ कि दान और दया सुपात्र पर ही करनी चाहिये..
🙏🏻🙏🏻


इन्टरनेट से सधन्यवाद..

Sunday, March 6, 2022

सुई और कैंची

एक दिन स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया ।वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं ।

जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।

उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं ।


इन्टरनेट से सधन्यवाद..

Sunday, February 13, 2022

कूटने के फायदे

कूटने के फायदे 😀😀😀

एक बुजुर्ग से एक आदमी बोला कि पहले इतने लोग बीमार नहीं होते थे जितने आज हो रहे हैं ।

बुजुर्ग ने अपने तजुर्बे से उसको बोला कि भाई जी पहले कूटने की परंपरा थी जिससे इम्यूनिटी पावर मजबूत रहती थी। पहले हम हर चीज को कूटते थे !

जबसे हमने कूटना छोड़ा है तब से हम सब बीमार होने लग गए जैसे पहले खेत से अनाज को कूट कर घर लाते थे। घर पर ही धान कूटकर चावल निकलता था !

घर में मिर्च मसाला कूटते थे । कपड़े भी कूटकूट कर धोते थे।

कभी कभी तो बड़ा भाई भी छोटे को कूट देता था और जब छोटा भाई उसकी शिकायत मां से करता था तो मां बड़े भाई को कूट देती थी। अगर गलती से भी किसी का छोटा सा भी नुकसान हो गया तो फिर पिताजी जमकर कूटते थे !

यानी कुल मिलाकर दिन भर कूटने का काम चलता रहता था !

स्कूल में मास्टरजी तो कूटते रहते थे । कभी अगर गिर पड़े और चोट लग गई तो फिर पिता जी कूटते थे!

जहां देखो वहां पर कूटने का काम चलता रहता था तो बीमारी नजदीक नहीं आती थी !

सबकी इमुनिटी पावर मजबूत रहती थी !

जब कभी बच्चा सर्दी में नहाने से मना करता था तो मां पहले कूट कर उसकी इमुनिटी पावर बढ़ाती थी और फिर नहलाती थी 👌

 वर्तमान समय में इम्यूनिटी पावर बढ़ाने के लिए कूटने की परंपरा फिर से चालू होनी चाहिए 😝😀😆



इन्टरनेट से सधन्यवाद..

Friday, February 11, 2022

मोहमाया के झूठे बंधन

मोहमाया के झूठे बंधन

एक रात एक बड़ी घनी अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा।

 उस काफिले के पास सौ ऊंट थे। उन्होंने ऊंट बांधे, खूंटियां गड़ाईं, लेकिन आखिर में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और एक रस्सी कहीं खो गई थी। आधी रात, बाजार बंद हो गए थे।

 अब वे कहां खूंटी लेने जाएं, कहां रस्सी! तो उन्होंने सराय के मालिक को उठाया और उससे कहा कि बड़ी कृपा होगी, एक खूंटी और एक रस्सी हमें चाहिए, हमारी खो गई है। निन्यानबे ऊंट बंध गए, सौवां अनबंधा है–अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है। 

उस बूढ़े आदमी ने कहाः घबड़ाओ मत। मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूंटी। लेकिन बड़े पागल आदमी हो। इतने दिन ऊंटों के साथ रहते हो गए, तुम्हें कुछ भी समझ न आई। जाओ और खूंटी गाड़ दो और रस्सी बांध दो और ऊंट को कह दो–सो जाए। 

उन्होंने कहाः पागल हम हैं कि तुम? अगर खूंटी हमारे पास होती तो हम तुम्हारे पास आते क्यों? कौन सी खूंटी गाड़ दें? उस बूढ़े आदमी ने कहाः बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो। तुम जाओ, सिर्फ खूंटी ठोकने का उपक्रम करो। अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ऊंट का क्या विश्वास? ऊंट का क्या हिसाब? जाओ ऐसा ठोको, जैसे खूंटी ठोकी जा रही है। गले पर रस्सी बांधों, जैसे कि रस्सी बांधी जाती है। और ऊंट से कहो कि सो जाओ। ऊंट सो जाएगा। अक्सर यहां मेहमान उतरते हैं, उनकी रस्सियां खो जाती हैं। और मैं इसलिए तो रस्सियां-खूंटियां रखता नहीं, उनके बिना ही काम चल जाता है।

मजबूरी थी, उसकी बात पर विश्वास तो नहीं पड़ता था। लेकिन वे गए, उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी–जो नहीं थी। सिर्फ आवाज हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। खूंटी ठोकी जा रही थी। रोज-रोज रात उसकी खूंटी ठुकती थी, वह बैठ गया। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी। रस्सी खूंटी से बांध दी गई–रस्सी, जो नहीं थी। ऊंट सो गया।

 वे बड़े हैरान हुए! एक बड़ी अदभुत बात उनके हाथ लग गई। सो गए। सुबह उठे, सुबह जल्दी ही काफिला आगे बढ़ना था। उन्होंने निन्यानबें ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं–वे ऊंट खड़े हो गए। और सौवें की तो कोई खूंटी थी नहीं जिसे निकालते। उन्होंने उसकी खूंटी न निकाली। उसको धक्के दिए। वह उठता न था, वह नहीं उठा। 

उन्होंने कहाः हद हो गई, रात धोखा खाता था सो भी ठीक था, अब दिन के उजाले में भी! इस मूढ़ को खूंटी नहीं दिखाई पड़ती कि नहीं है? वे उसे धक्के दिए चले गए, लेकिन ऊंट ने उठने से इनकार कर दिया। ऊंट बड़ा धार्मिक रहा होगा। 

वे अंदर गए, उन्होंने उस बूढ़े आदमी को कहा कि कोई जादू कर दिया क्या? क्या कर दिया तुमने, ऊंट उठता नहीं। 

उसने कहाः बड़े पागल हो तुम, जाओ पहले खूंटी निकालो। पहले रस्सी खोलो। उन्होंने कहाः लेकिन रस्सी हो तब…। उन्होंने कहाः रात कैसे बांधी थी? वैसे ही खोलो। गए मजबूरी थी। जाकर उन्होंने खूंटी उखाड़ी, आवाज की, खूंटी निकली, ऊंट उठ कर खड़ा हो गया। रस्सी खोली, ऊंट चलने के लिए तत्पर हो गया। 

उन्होंने उस बूढ़े आदमी को धन्यवाद दिया और कहाः बड़े अदभुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत है।

उन्होंने कहा कि नहीं, यह ऊंटों की जानकारी से सूत्र नहीं निकला, यह सूत्र आदमियों की जानकारी से निकला है। आदमी ऐसी खूटियों में बंधा होता है जो कहीं भी नहीं हैं। और ऐसी रस्सियों में जिनका कोई अस्तित्व नहीं है और जीवन भर बंधा रहता है। चिल्लाता हैः मैं कैसे मुक्त हो जाऊं ? कैसे परमात्मा को पा लूं, कैसे आत्मा को पा लूं? मुझे मुक्ति चाहिए, मोक्ष चाहिए–चिल्लाता है पर हिलता नहीं अपनी जगह से, क्योंकि खूंटियां उसे बांधे हैं।



इन्टरनेट से सधन्यवाद 

Wednesday, February 9, 2022

मन पर विजय हम पा सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

है ये प्रार्थना मेरे दाता.. है ये प्रार्थना मेरे दाता

आ.... आ....

 

सबका भला  हम कर सकें बस ये हमारा कर्म हो

सबका भला  हम कर सकें बस ये हमारा कर्म हो

जग में दुखी ना  रहे कोई मानव की सेवा धर्म हो

जग में दुखी ना  रहे कोई मानव की सेवा धर्म हो

सबके लबों पे रहे हंसी हम गीत ऐसा गा सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

है ये प्रार्थना मेरे दाता.. है ये प्रार्थना मेरे दाता

आ.... आ....

 

अन्याय से लड़ते रहें हम न्याय को सम्मान दें

अन्याय से लड़ते रहें हम न्याय को सम्मान दें

हम सत्य पथ  पर डटे रहें और सद्गुणों को मान दें

हम सत्य पथ  पर डटे रहें और सद्गुणों को मान दें

नफरत का बादल छंट सके उजियारा ऐसा ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

है ये प्रार्थना मेरे दाता.. है ये प्रार्थना मेरे दाता

आ.... आ....

 

मन में अटल विश्वास हो अंतर में तेरा प्रकाश हो

मन में अटल विश्वास हो अंतर में तेरा प्रकाश हो

तुम दूर हो या पास हो दाता हमारी आस हो

तुम दूर हो या पास हो दाता हमारी आस हो

हमें ज्ञान दो इतना प्रभु जीवन जो अमर बना सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

है ये प्रार्थना मेरे दाता.. है ये प्रार्थना मेरे दाता

आ.... आ....

 

जिंदा रहे इंसानियत और प्रेम की गंगा बहे

जिंदा रहे इंसानियत और प्रेम की गंगा बहे

जग एक ही परिवार है सब एक स्वर मे यही कहे

जग एक ही परिवार है सब एक स्वर मे यही कहे

खिले फूल मन में प्यार की जग को वो बाग बना सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

मन पर विजय हम पा सकें सुख शांति जग में ला सकें

सबके हृदय में प्रेम हो हम दीप ऐसा जला सकें

है ये प्रार्थना मेरे दाता.. है ये प्रार्थना मेरे दाता

आ.... आ....


Saturday, February 5, 2022

बेराजगार इंजीनियर 🤣🤣🤣

आइए आज आपको हंसाते हैं 😂😁
एक बेराजगार इंजीनियर काफी दिनों से नौकरी तलाश
रहा था,
पर नौकरी उस लड़की की तरह व्यवहार कर रही थी जो
क्लास के सभी लड़को को डेट कर चुकी थी लेकिन सिर्फ
उसी से कतरा रही थी।
.😜😜😜
उसके साथ के सारे mba, mca जॉब पर लग चुके थे लेकिन उसे
हर जगह से ठुकराया जा चुका था। माँ बाप ने भी
जेब खर्च देना बंद कर दिया था और गर्लफ्रेंड तो किसी
और से शादी कर दो बच्चों की अम्मा बन चुकी थी।
.😜😜😜😜
ऐसी मुश्किल परिस्थिति में इंजिनीयर ने तय किया कि अब
जो भी काम मिले कर लूँगा कम से कम दो वक़्त की रोटी
तो नसीब होगी।
.😜😜😜😛😛
तभी बिल्ली के भाग से छींका टूटा और उसे पता चला
कि सर्कस में एक मैनेजर की जगह खाली है।
इंजीनियर को लगा कि चाहे जो हो जाये इस नौकरी को
हाथ से जाने न दूंगा।
.😜😜😜😜😜
उसने इंटरव्यू दिया तो देखा कि सर्कस में तो उसके जैसे
इंजीनियर्स की लाइन लगी है, वो ये देख निराश हो गया।
.😂😂😂😂
सर्कस का मालिक उसकी निराशा समझ गया, वो भला
आदमी था उसने इंजीनियर के कान में कहा कि एक नौकरी
है, करना चाहो तो दो वक़्त के खाने और 30 हजार रूपये
महीने पे दे सकता हूँ।
.😛😛😜😜
इंजीनियर इस काम के लिए ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गया और
एक वक़्त का भर पेट खाना खाने के बाद मालिक ने उसे
अपने कमरे में बुलाया और बन्दर🙊 की ड्रेस देकर कहा - इसे
पहन लो और किसी पेड़ की डाली में चढ़ कर बैठ जाओ, जब
लोग आये तो उन्हें तरह तरह के करतब दिखाओ,
अपनी हरकतों से उन्हें हँसाओ...
इंजीनियर ने चुपचाप बन्दर की ड्रेस पहन ली और पेड़ पर चढ़
कर लोगो का मनोरंजन करने लगा।
.😄😄😄😄😄
बहुत से लोग आते, उसे देखते और खुश होते। कुछ उसे केला देते
तो कुछ मूंगफलियां खिलाते। कुछ इतने कमीने होते कि उसे
पत्थर मारते, चिढ़ाते।
.😜😜😜😜😜
एक दिन सर्कस देखने उसी के कॉलेज के जूनियर्स का ग्रुप
आया था।
वो उन्हें देख कर बहुत खुश हो गया और सोचा कि आज
इनका खूब मनोरंजन करूँगा।
लेकिन ये नए नवेले इंजीनियर्स बहुत हरामी थे, ये बन्दर को
परेशान करने लगे।
.😡😡😡😡😡
कोई उसकी पूँछ खींचने लगा तो कोई पत्थर मारने लगा और
इसी खींचतान में बन्दर शेर के बाड़े में गिर गया।
.😂😂😂😡😡
बन्दर ने शेर को देखा और शेर ने बन्दर को, लोगो ने बाड़े के
बाहर से दोनों को देखा।
.😂😂😂😂😳😳
बन्दर की ड्रेस गीली हो गयी और दर्शको को पसीना छूटने
लगा।
बन्दर भगवान् से प्रार्थना करने लगा, उसे लगा कि उसका
आखिरी समय आ गया है। शेर आराम से बन्दर के पास आया
और उसे सूंघने लगा, दर्शको की आँखों में आंसू आ गए।
.😂😂😢😢😢
बन्दर 🙈ने डर के मारे आँखे बंद कर ली और हनुमान चालीसा
का पाठ करने लगा।
.😱😱😱😱😱😱😱
अचानक बन्दर 🙉के कानो में शेर की आवाज़ गूंजी - अबे
गुप्ता घबरा मत, मैं हूँ तेरा सीनियर, सुमित त्रिवेदी 2016 बैच... civil ब्रांच....
😆😆😜😜😜😜
😛😛😛😜😜😜😜😜

 
इन्टरनेट से सधन्यवाद... 

Saturday, January 8, 2022

एक बेटी का पिता...

एक बेटी का पिता.....
.
एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई, लड़का बड़े अच्छे घर से था तो पिता बहुत खुश हुए। लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया।

एक दिन शादी से पहले लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया। पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी वह ना न कह सके। लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया। फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था।

लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली। चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये, चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी और इलायची भी डली हुई थी। वो सोच मे पड़ गये की ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं। दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा, दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर।

उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया। वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे - मुझे क्या खाना है, क्या पीना है, मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है ? ये परफेक्टली आपको कैसे पता है ? तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था।

ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं बोलेंगे कुछ नहीं, प्लीज अगर हो सके तो आप उनका ध्यान रखियेगा। पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था। लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया।

जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो ? ?
तो लडकी का पिता बोले - मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है, बल्कि वो तो मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है। और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े।

दुनिया में सब कहते हैं ना ! कि बेटी है, एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी। मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ की बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती। बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है।             

दुनियाँ की सभी बेटियों को मेरा सादर प्रणाम।


इन्टरनेट से सधन्यवाद। 

Monday, January 3, 2022

मोबाईल Mobile

वह प्राइमरी स्कूल की टीचर थी |
सुबह उसने बच्चो का टेस्ट लिया था
और उनकी कॉपिया जाचने के लिए
घर ले आई थी | बच्चो की कॉपिया
देखते देखते उसके आंसू बहने लगे | 
उसका पति वही लेटे mobile देख रहा था |
उसने रोने का कारण पूछा ।
टीचर बोली , “सुबह मैंने बच्चो को
‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ
पंक्तिया लिखने को कहा था ; एक बच्चे
ने इच्छा जाहिर करी है की भगवन उसे
Mobile बना दे |
यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे |
टीचर बोली , “आगे तो सुनो बच्चे ने
लिखा है यदि मै mobile बन जाऊंगा, तो
घर में मेरी एक खास जगह होगी और
सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा |
जब मै बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान
से सुनेंगे | मुझे रोका टोका नहीं जायेगा
और नहीं उल्टे सवाल होंगे |
जब मै mobile बनूंगा, तो पापा ऑफिस से
आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे
साथ बैठेंगे | मम्मी को जब तनाव होगा,
तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ
रहना चाहेंगी | मेरे बड़े भाई-बहनों के
बीच मेरे पास रहने के लिए झगड़ा होगा |
यहाँ तक की जब mobile बंद रहेगा, तब भी
उसकी अच्छी तरह देखभाल होगी |
और हाँ , mobile के रूप में मै सबको ख़ुशी
भी दे सकूँगा | “
यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा
गंभीर होते हुए बोला ,
‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके
माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं देते !’
टीचर पत्नी ने आँसू भरी आँखों से
उसकी तरफ देखा और बोली,
“जानते हो, यह बच्चा कौन है?
हमारा अपना बच्चा……
.. हमारा छोटू |”
सोचिये, यह छोटू कहीं आपका बच्चा
तो नहीं ।
मित्रों , आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी
में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम
वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी
सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर
खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में
गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की
अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार
को नहीं समझ पायेंगे।

Moral : Please live some of your valuable time for your FAMILY. 
🙏🙏🙏🙏🙏

सफर और हमसफ़र

मैंने ये कहानी इन्टरनेट पर पढ़ा था, मुझे अच्छा लगा तो आपके साथ साझा कर रहा हूं।


सफर और हमसफ़र

ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जर्नल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। सब अजनबी चेहरे थे। स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जर्नल डिब्बे में ही बैठना पड़ा। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। 

जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते । 

वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया। ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गया था। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही। 
फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया।

चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे। 

मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया। बालो को डाई किए काफी दिन हो गए थे मुझे। ज्यादा तो नही थे सफेद बाल मेरे सर पे। मगर इतने जरूर थे कि गौर से देखो तो नजर आ जाए।

मैं उठकर बाथरूम गई। हैंड बैग से फेसवाश निकाला चेहरे को ढंग से धोया फिर शीशे में चेहरे को गौर से देखा। पसंद तो नही आया मगर अजीब सा मुँह बना कर मैने शीशा वापस बैग में डाला और वापस अपनी जगह पर आ गई। 

मग़र वो साहब तो खिड़की की तरफ से मेरा बैग सरकाकर खुद खिड़की के पास बैठ गए थे।
मुझे पूरी तरह देखा भी नही बस बिना देखे ही कहा, " सॉरी, भाग कर चढ़ा तो पसीना आ गया था । थोड़ा सुख जाए फिर अपनी जगह बैठ जाऊंगा।" फिर वह अपने मोबाइल में लग गया। मेरी इच्छा जानने की कोशिश भी नही की। उसकी यही बात हमेशा मुझे बुरी लगती थी। फिर भी ना जाने उसमे ऐसा क्या था कि आज तक मैंने उसे नही भुलाया। एक वो था कि दस सालों में ही भूल गया। मैंने सोचा शायद अभी तक गौर नही किया। पहचान लेगा। थोड़ी मोटी हो गई हूँ। शायद इसलिए नही पहचाना। मैं उदास हो गई। 

जिस शख्स को जीवन मे कभी भुला ही नही पाई उसको मेरा चेहरा ही याद नही😔

माना कि ये औरतों और लड़कियों को ताड़ने की इसकी आदत नही मग़र पहचाने भी नही😔

शादीशुदा है। मैं भी शादीशुदा हुँ जानती थी इसके साथ रहना मुश्किल है मग़र इसका मतलब यह तो नही कि अपने खयालो को अपने सपनो को जीना छोड़ दूं। 
एक तमन्ना थी कि कुछ पल खुल के उसके साथ गुजारूं। माहौल दोस्ताना ही हो मग़र हो तो सही😔

आज वही शख्स पास बैठा था जिसे स्कूल टाइम से मैने दिल मे बसा रखा था। सोसल मीडिया पर उसके सारे एकाउंट चोरी छुपे देखा करती थी। उसकी हर कविता, हर शायरी में खुद को खोजा करती थी। वह तो आज पहचान ही नही रहा😔

माना कि हम लोगों में कभी प्यार की पींगे नही चली। ना कभी इजहार हुआ। हां वो हमेशा मेरी केयर करता था, और मैं उसकी केयर करती थी। कॉलेज छुटा तो मेरी शादी हो गई और वो फ़ौज में चला गया। फिर उसकी शादी हुई। जब भी गांव गई उसकी सारी खबर ले आती थी। 

बस ऐसे ही जिंदगी गुजर गई।

आधे घण्टे से ऊपर हो गया। वो आराम से खिड़की के पास बैठा मोबाइल में लगा था। देखना तो दूर चेहरा भी ऊपर नही किया😔

मैं कभी मोबाइल में देखती कभी उसकी तरफ। सोसल मीडिया पर उसके एकाउंट खोल कर देखे। तस्वीर मिलाई। वही था। पक्का वही। कोई शक नही था। वैसे भी हम महिलाएं पहचानने में कभी भी धोखा नही खा सकती। 20 साल बाद भी सिर्फ आंखों से पहचान ले☺️
फिर और कुछ वक्त गुजरा। माहौल वैसा का वैसा था। मैं बस पहलू बदलती रही। 

फिर अचानक टीटी आ गया। सबसे टिकिट पूछ रहा था। 
मैंने अपना टिकिट दिखा दिया। उससे पूछा तो उसने कहा नही है।

टीटी बोला, "फाइन लगेगा"
वह बोला, "लगा दो"
टीटी, " कहाँ का टिकिट बनाऊं?"

उसने जल्दी से जवाब नही दिया। मेरी तरफ देखने लगा। मैं कुछ समझी नही। 
उसने मेरे हाथ मे थमी टिकिट को गौर से देखा फिर टीटी से बोला, " कानपुर।"
टीटी ने कानपुर की टिकिट बना कर दी। और पैसे लेकर चला गया।
वह फिर से मोबाइल में तल्लीन हो गया।

आखिर मुझसे रहा नही गया। मैंने पूछ ही लिया,"कानपुर में कहाँ रहते हो?"
वह मोबाइल में नजरें गढ़ाए हुए ही बोला, " कहीँ नही" 
वह चुप हो गया तो मैं फिर बोली, "किसी काम से जा रहे हो"
वह बोला, "हाँ"

अब मै चुप हो गई। वह अजनबी की तरह बात कर रहा था और अजनबी से कैसे पूछ लूँ किस काम से जा रहे हो।
कुछ देर चुप रहने के बाद फिर मैंने पूछ ही लिया, "वहां शायद आप नौकरी करते हो?"
उसने कहा,"नही"

मैंने फिर हिम्मत कर के पूछा "तो किसी से मिलने जा रहे हो?"
वही संक्षिप्त उत्तर ,"नही"
आखरी जवाब सुनकर मेरी हिम्मत नही हुई कि और भी कुछ पूछूँ। अजीब आदमी था । बिना काम सफर कर रहा था।
मैं मुँह फेर कर अपने मोबाइल में लग गई। 
कुछ देर बाद खुद ही बोला, "ये भी पूछ लो क्यों जा रहा हूँ कानपुर?"

मेरे मुंह से जल्दी में निकला," बताओ, क्यों जा रहे हो?"
फिर अपने ही उतावलेपन पर मुझे शर्म सी आ गई। 
उसने थोड़ा सा मुस्कराते हुवे कहा, " एक पुरानी दोस्त मिल गई। जो आज अकेले सफर पर जा रही थी। फौजी आदमी हूँ। सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है । अकेले कैसे जाने देता। इसलिए उसे कानपुर तक छोड़ने जा रहा हूँ। " इतना सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का। नॉर्मल नही रह सकी मैं।

मग़र मन के भावों को दबाने का असफल प्रयत्न करते हुए मैने हिम्मत कर के फिर पूछा, " कहाँ है वो दोस्त?"
कमबख्त फिर मुस्कराता हुआ बोला," यहीं मेरे पास बैठी है ना"

इतना सुनकर मेरे सब कुछ समझ मे आ गया। कि क्यों उसने टिकिट नही लिया। क्योंकि उसे तो पता ही नही था मैं कहाँ जा रही हूं। सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए वह दिल्ली से कानपुर का सफर कर रहा था। जान कर इतनी खुशी मिली कि आंखों में आंसू आ गए।

दिल के भीतर एक गोला सा बना और फट गया। परिणाम में आंखे तो भिगनी ही थी।
बोला, "रो क्यों रही हो?"

मै बस इतना ही कह पाई," तुम मर्द हो नही समझ सकते"
वह बोला, " क्योंकि थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ इसलिए एक कवि और लेखक भी हूँ। सब समझ सकता हूँ।"
मैंने खुद को संभालते हुए कहा "शुक्रिया, मुझे पहचानने के लिए और मेरे लिए इतना टाइम निकालने के लिए"
वह बोला, "प्लेटफार्म पर अकेली घूम रही थी। कोई साथ नही दिखा तो आना पड़ा। कल ही रक्षा बंधन था। इसलिए बहुत भीड़ है। तुमको यूँ अकेले सफर नही करना चाहिए।"

"क्या करती, उनको छुट्टी नही मिल रही थी। और भाई यहां दिल्ली में आकर बस गए। राखी बांधने तो आना ही था।" मैंने मजबूरी बताई।

"ऐसे भाइयों को राखी बांधने आई हो जिनको ये भी फिक्र नही कि बहिन इतना लंबा सफर अकेले कैसे करेगी?"

"भाई शादी के बाद भाई रहे ही नही। भाभियों के हो गए। मम्मी पापा रहे नही।"

कह कर मैं उदास हो गई।
वह फिर बोला, "तो पति को तो समझना चाहिए।"
"उनकी बहुत बिजी लाइफ है मैं ज्यादा डिस्टर्ब नही करती। और आजकल इतना खतरा नही रहा। कर लेती हुँ मैं अकेले सफर। तुम अपनी सुनाओ कैसे हो?"

"अच्छा हूँ, कट रही है जिंदगी"
"मेरी याद आती थी क्या?" मैंने हिम्मत कर के पूछा।
वो चुप हो गया।

कुछ नही बोला तो मैं फिर बोली, "सॉरी, यूँ ही पूछ लिया। अब तो परिपक्व हो गए हैं। कर सकते है ऐसी बात।"
उसने शर्ट की बाजू की बटन खोल कर हाथ मे पहना वो तांबे का कड़ा दिखाया जो मैंने ही फ्रेंडशिप डे पर उसे दिया था। बोला, " याद तो नही आती पर कमबख्त ये तेरी याद दिला देता था।"

कड़ा देख कर दिल को बहुत शुकुन मिला। मैं बोली "कभी सम्पर्क क्यों नही किया?"

वह बोला," डिस्टर्ब नही करना चाहता था। तुम्हारी अपनी जिंदगी है और मेरी अपनी जिंदगी है।"
मैंने डरते डरते पूछा," तुम्हे छू लुँ"

वह बोला, " पाप नही लगेगा?"
मै बोली," नही छू ने से नही लगता।"
और फिर मैं कानपुर तक उसका हाथ पकड़ कर बैठी रही।।

बहुत सी बातें हुईं।

जिंदगी का एक ऐसा यादगार दिन था जिसे आखरी सांस तक नही बुला पाऊंगी।
वह मुझे सुरक्षित घर छोड़ कर गया। रुका नही। बाहर से ही चला गया।

जम्मू थी उसकी ड्यूटी । चला गया।

उसके बाद उससे कभी बात नही हुई । क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर नही लिए। 

हांलांकि हमारे बीच कभी भी नापाक कुछ भी नही हुआ। एक पवित्र सा रिश्ता था। मगर रिश्तो की गरिमा बनाए रखना जरूरी था। 

फिर ठीक एक महीने बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि वो देश के लिए शहीद हो गया। क्या गुजरी होगी मुझ पर वर्णन नही कर सकती। उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी। पता नही😔

लोक लाज के डर से मैं उसके अंतिम दर्शन भी नही कर सकी।

आज उससे मिले एक साल हो गया है आज भी रखबन्धन का दूसरा दिन है आज भी सफर कर रही हूँ। दिल्ली से कानपुर जा रही हूं। जानबूझकर जर्नल डिब्बे का टिकिट लिया है मैंने।
अकेली हूँ। न जाने दिल क्यों आस पाले बैठा है कि आज फिर आएगा और पसीना सुखाने के लिए उसी खिड़की के पास बैठेगा।
एक सफर वो था जिसमे कोई #हमसफ़र था।
एक सफर आज है जिसमे उसकी यादें हमसफ़र है। बाकी जिंदगी का सफर जारी है देखते है कौन मिलता है कौन साथ छोड़ता है...!!!
😥😥😥