Saturday, November 13, 2021

अल्हड़ सी रहने दो मुझको

अल्हड़ सी रहने दो मुझको
नटखट शैतानी रहने दो
नहीं बनना मुझको शहजादी
चिड़िया मनमानी रहने दो

क्यूं बन जाऊं मैं समझदार?
क्यूं अपना बचपन खो दूं मैं
क्यूं खुशियों को धूमिल कर दूं?
क्यूं जिम्मेदारी बो दूं मैं?
नही होना मुझको हिम जैसा
ठंडा सा पानी रहने दो। 
अल्हड़ सी रहने दो मुझको 
नटखट शैतानी रहने दो।

अरे जाने दो! क्यूं उमर गिनू?
क्यूं खुद को बदलकर वार करूं?
क्यूं नीरस बन सब रस त्यज दूं?
मैं क्यूं न खुद को प्यार करूं?
मैं तितली सी ,कई रंग मुझमें
मौजों का रवानी रहने दो
अल्हड़ सी रहने दो मुझको
 नटखट शैतानी रहने दो।

कभी प्रेम की बगिया में झूमूं
बादल से करूं लुक्का छिप्पी
कभी भिड़ जाऊं सूरज से भी
चंदा को भी दे दूं झप्पी
ऊबड़ खाबड़ पगडंडी मैं
जैसी हूं वैसी रहने दो।
अल्हड़ सी रहने दो मुझको
नटखट शैतानी रहने दो। 


ज्योतिकृति की ओर से धन्यवाद सहित

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