Thursday, December 22, 2011

तजुर्बा तेरी मोहब्बत का


उनको ये शिकायत है कि मै बेवफ़ाई पे नहीं लिखता और मै सोचता हुं कि मै उनकी रुसवाई पे नहीं लिखता,
खुद अपने से ज्यादा बुरा जमाने मै कौन है?? मै इसीलिये औरों की बुराई पे नहीं लिखता,
कुछ तो आदत से मजबूर हुं और कुछ फ़ितरतों की पसन्द है, जख्म कितने भी गहरे हों मै उनकी दुहाई पे नहीं लिखता,
दुनिया का क्या है हर हाल मे इल्ज़ाम लगाती है, वरना क्या बात कि मैं कुछ अपनी सफ़ाई पे नहीं लिखता,
शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़ मगर एक रुकावट है, मेरे उसूल हैं मैं गुनाहों की कमाई पे नही लिखता,
उसकी ताक़त का नशा "मंत्र और कलमे" में बराबर है !! मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता,
समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!! मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी गहराई पे नही लिखता,
पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हुं , ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता,
"तजुर्बा तेरी मोहब्बत का" ना लिखने की वजह बस ये!! क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...

6 comments:

  1. बहुत खूबसूरत लिखा है बंधु, और आखिरी पंक्ति तो बस्स छीलके रख गई है।
    आभार स्वीकार करें।

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  2. बहुत खूबसूरत..!!
    खुशियाँ मेरे दर पे करतीं हैं कदमबोसी
    मुस्कान कलम मेरी, मैं रुलाई पे नहीं लिखता

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  3. आप सब का शुक्रिया। पर ये मेरा लिखा हुआ नहीं है, बहुत दिन पहले मैने कहीं पढ़ा था। अब मैं इसे ब्लॉग के द्वारा आप सबसे साझा कर रहा हुं।

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    1. जिसका भी लिखा हुआ है, हमें अच्छा लगा और आपने जो स्पष्टीकरण दिया वो और भी अच्छा लगा।
      और दोस्त, ये वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा देंगे तो पाठकों के लिये टिप्पणी करना सुगम हो जायेगा। सुझाव ही है, मानने न मानने की कतई कोई बाध्यता नहीं है।

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  4. सुझाव के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, मैने कोई वर्ड वेरिफिकेशन नहीं डाला है । हो सकता है कि मेरे ब्लॉग को सब्सक्राइब करने के बाद ये नहीं आये। वैसे मैं देखुंगा कि कहीं ये गुगल का कोई सुरक्षा प्रबंध तो नहीं है और मैं कोशिश करुंगा कि ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा सकुं।

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