Sunday, December 18, 2011

श्रीलाल शुक्ल... एक परिचय

हिन्दी साहित्य के मशहूर साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसंबर 1925 ई. में उत्तर प्रदेश के लखनऊ के अतरौली में हुआ था। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे श्रीलाल शुरुआत से ही मेधावी छात्र थे। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की और लॉ में दाखिला लिया। हालांकि इस बीच विवाह हो जाने से पढ़ाई में बाधा आ गई और वे कानून की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। 1949 में इन्होंने उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा में भाग लिया और सफल भी रहे।
श्रीलाल शुक्ल को एक रेडियो नाटक सुनकर लिखने की प्रेरणा मिली और इन्होंने स्वर्णग्राम एवं वर्षा नामक लेख लिखा। यह लेख 'निकर्ष' में प्रकाशित हुआ। इसके बाद से लिखने का सिलसिला शुरू हो गया। 1938 में सरकारी सेवा से मुक्त होने के बाद श्रीलाल अपने पैतृक घर लखनऊ में रहकर निरंतर साहित्य सेवा में जुटे रहे और एक के बाद एक कई कालजयी रचनाएं लिखी।
श्रीलाल शुक्ल का पहला उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' (1957) था। 1958 में प्रकाशित 'अंगद का पांव' उनका पहला व्यंग्य माना जाता है। भारत के ग्रामीण जीवन पर कटाक्ष करने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। शुक्ल की रचनाएं का दायरा काफी विस्तृत था। उन्होंने उपन्यास, कहानी संग्रह, व्यंग्य, आलोचना, निबंध और बाल साहित्य में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। उपन्यास - राग दरबारी, सूनी घाटी का सूरज, अज्ञातवास, आदमी का ज़हर, सीमाएं टूटती हैं, मकान, पहला पड़ाव, विश्रामपुर का संत, अंगद का पांव, यहां से वहां, उमरावनगर में कुछ दिन। कहानी संग्रह - यह घर मेरा नहीं है, इस उम्र में। आलोचना - अज्ञेय: कुछ राग और कुछ रंग। निबंध - भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर। बाल साहित्य - बढबर सिंह और उसके साथी।
भारत के गांवों पर जो भी उपन्यास और कहानियां लिखी गई हैं उनमें 'गोदान', 'मैला आंचल' और 'राग दरबारी' सर्वाधिक यथार्थवादी उपन्यास है। इसमें व्यंग्य इसके गेटअप को ज्यादा चमक देता है और ज्यादा पठनीय बनाता है। रागदरबारी अपने आप में एक अलग उपन्यास है जो व्यंग्य में ऐसे डूबा है जैसे कि चाशनी में जलेबी डूबी रहती है। यह व्यंग्य अपनी मिठास के बाबजूद एक अलग शक्ल और रंगरूप से अपनी पहचान रखती है। गांवों पर थोपी गई नैतिकता की असलियत का जो पर्दा श्रीलाल शुक्ल ने उठाया है उसके पीछे तो सभी ने झांका हुआ था, पर सच कहने का साहस केवल उन्होंने ही उठाया।
  श्री लाल शुक्ल को इसी महीने ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। श्री शुक्ल को यह पुरस्कार अस्पताल में ही 19 अक्टूबर को दिया गया। दो दिन पूर्व ही श्रीलाल शुक्ल को सांस में तकलीफ के बाद लखनऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। श्रीलाल शुक्ल ने राग दरबारी, मकान, सूनी घाटी का सूरज, पहला पड़ाव, अज्ञातवास तथा विश्रामपुर का संत आदि कालजयी रचनाओं के माध्यम से साहित्य जगत में अपनी एक प्रतिष्ठित पहचान बनाई। स्वतंत्रता बाद के भारतीय ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्रीलाल शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 मे पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था।

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