Saturday, November 19, 2011

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की,
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में,
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की

वस्ल की रात ना जाने क्यों इसरार था उनको जाने पर,
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की

उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया,
रोते रोते बैठ गयी आवाज़ किसी सौदाई की.

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