Saturday, June 4, 2011

जाने क्युं

जाने क्युं ...

वो जब भी आते हैं,
टुटे हुए दिल टुकडे़ बिखर जाते हैं,
दिल के जख्म कांटों से लिपट जाते हैं,

जाने क्युं....

ये दिल सिर्फ़ उन्हे चाहता है,
दर्द भी उन्हे अपनाता है,
वक्त भी जैसे ठहर सा जाता है,

जाने क्युं...

सारे सपने सो जाते हैं,
सारे अपने खो जाते हैं,
हम तन्हा - तन्हा हो जाते हैं,

जाने क्युं....

हम याद उन्हे जब करते हैं,
जीते जी हम मरते हैं,
फिर भी प्यार उन्हें हीं करते हैं,

जाने क्युं.... जाने क्युं....

No comments:

Post a Comment