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Monday, May 14, 2018

मुझे अच्छा लगता है..!

जिस औरत ने भी इसे लिखा है कमाल लिखा है...........!
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मुझे अच्छा लगता है मर्द से मुकाबला ना करना और उस से एक दर्जा कमज़ोर रहना -

मुझे अच्छा लगता है जब कहीं बाहर जाते हुए वह मुझ से कहता है "रुको! मैं तुम्हे ले जाता हूँ या मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ "

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझ से एक कदम आगे चलता है - गैर महफूज़ और खतरनाक रास्ते पर उसके पीछे पीछे उसके छोड़े हुए क़दमों के निशान पर चलते हुए एहसास होता है उसे मेरा ख्याल खुद से ज्यादा है,

मुझे अच्छा लगता है जब गहराई से ऊपर चढ़ते और ऊंचाई से ढलान की तरफ जाते हुए वह मुड़ मुड़ कर मुझे चढ़ने और उतरने में मदद देने के लिए बार बार अपना हाथ बढ़ाता है -

मुझे अच्छा लगता है जब किसी सफर पर जाते और वापस आते हुए सामान का सारा बोझ वह अपने दोनों कंधों और सर पर बिना हिचक किये खुद ही बढ़ कर उठा लेता है - और अक्सर वज़नी चीजों को दूसरी जगह रखते वक़्त उसका यह कहना कि "तुम छोड़ दो यह मेरा काम है "

मुझे अच्छा लगता है जब वह मेरी वजह से सर्द मौसम में सवारी गाड़ी का इंतज़ार करने के लिए खुद स्टेशन पे इंतजार करता है -

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे ज़रूरत की हर चीज़ घर पर ही मुहैय्या कर देता है ताकि मुझे घर की जिम्मेदारियों के साथ साथ बाहर जाने की दिक़्क़त ना उठानी पड़े और लोगों के नामुनासिब रावैय्यों का सामना ना करना पड़े -

मुझे बहोत अच्छा लगता है जब रात की खनकी में मेरे साथ आसमान पर तारे गिनते हुए वह मुझे ठंड लग जाने के डर से अपना कोट उतार कर मेरे कन्धों पर डाल देता है -

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे मेरे सारे गम आंसुओं में बहाने के लिए अपना मज़बूत कंधा पेश करता है और हर कदम पर अपने साथ होने का यकीन दिलाता है -

मुझे अच्छा लगता है जब वह खराब हालात में मुझे अपनी जिम्मेदारी मान कर सहारा देने केलिए मेरे आगे ढाल की तरह खड़ा हो जाता है और कहता है " डरो मत मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा" -

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे गैर नज़रों से महफूज़ रहने के लिए समझाया करता है और अपना हक जताते हुए कहता है कि "तुम सिर्फ मेरी हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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लेकिन अफसोस हम में से अक्सर लड़कियां इन तमाम खुशगवार अहसास को महज मर्द से बराबरी का मुकाबला करने की वजह से खो देती हैं,,,,,,,
फिर जब मर्द यह मान लेता है कि औरत उस से कम नहीं तब वह उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाना छोड़ देता है - तब ऐसे खूबसूरत लम्हात एक एक करके ज़िन्दगी से कम होते चले जाते हैं,
और फिर ज़िन्दगी बे रंग और बेमतलब हो कर अपनी खुशीया खो देती है,,,,,,,,,,,,,,

Note - शादी-शुदा जिन्दगी में एक दुसरे से मुकाबला नही बल्कि एक दुसरे से प्यार होना चाहिये, एक दुसरे के प्रति प्रेम आदर भाव होनी चाहिये...!!!

Tuesday, November 28, 2017

ऐ जवानों

ऐ जवानों जिंदगी को देश पर कुर्बान कर दो,
देश की इज्जत की खातिर प्राणों का बलिदान कर दो!

पाक का नापाक इरादा
बढ़ रहा इस देश पर,
कर रहा हमला हरामी
कारगिल कश्मीर पर,

बोलता है बात मीठी,
दिल मे तलवार है,
है भरोसे मंद नही,
नवाज एक खूंखार है,

बढ़ रहे जो पाँव उसके तोड़ कर लाचार कर दो,
देश की इज्जत की खातिर प्राणों का बलिदान कर दो!

न रखो दोस्ती की आशा,
खून का दुश्मन है प्यासा,
डट कर लड़ते रहो,
न दूर से देखो तमाशा,

दुश्मन को ये जता दो,
कि मौत से डरते नही हो,
हौसले बुलंद कर लो,
प्राणों में उमंग भर लो,

देशवाशियों दुश्मन के चूर सब अरमान कर दो,
देश की इज्जत की खातिर प्राणों का बलिदान कर दो!

Friday, December 20, 2013

कैसे मन में जगता है किसी ‌के प्रति प्रेम और लगाव अध्यात्मिक गुरू / श्री श्री रविशंकर

किसी इन्द्रिय-संबंधित पदार्थ के साथ बारंबार संगत उसके लिए लालसा उत्पन्न करती है। हो सकता है तुम्हें हर सुबह कॉफी पीने की आदत हो, जबकि तुम कॉफी के चाव से पैदा नहीं हुए थे, तुमने अपने भीतर उसकी आदत प्रारंभ कर दी है, उसी ने लालसा को उत्पन्न किया है। ये सब कैसे शुरू हुआ?

कॉफी पीने की आदत कोई एक दिन में नहीं बनी! व्यसन किसी खास वस्तु के पुनरावर्ती अनुभव से प्रारंभ होता है। वो आदत बन जाती है- और आदत का स्वभाव है कि वह तुम्हें आनंद नहीं देती वह पीड़ा देती है। अतः कॉफी पीना तुम्हें स्वर्ग में लेकर नहीं जाएगी लेकिन यदि तुम नहीं पियोगे तब तुम नरक में होने जैसा महसूस कर सकते हो।

किसी खास इन्दिय-संबंधित वस्तु का पुनरावर्ती अनुभव या संगत तुम्हें उसे और भी पाने की इच्छा करवाता है। तुम उसके बारे में सोचते हो और वह उसे और भी पाने की संवेदना उत्पन्न करता है। तुम तंत्रिका तंत्र में जहां भी ध्यान देते हो, उस वस्तु के लिए तुम्हारी लालसा आरंभ हो जाती है।

संगति के साथ आती है इच्छा और इच्छा के साथ आता है क्रोध। जब भी व्यक्ति क्रोधित होता है। उस क्रोध के पीछे इच्छा होती है। चाहे पूरी हो या न हो, इच्छा क्रोध की ओर ले जाती है।

तो तुम किसी पर गुस्सा होते हो। दूसरा कदम है तुम उनसे अनुरक्त हो जाते हो। अब जब भी तुम किसी पर क्रोधित होगे, कभी न कभी पछताओगे, पश्चाताप और भी लगाव लाता है। पश्चाताप करने से तुम व्यक्ति या परिस्थिति से दूर नहीं जाते, उसके और भी नजदीक जाते हो। ये सब सूक्ष्म रूप में होता है।

क्या तुमने देखा है कि तुम जिस पर भी क्रोध या घृणा करते हो, उस व्यक्ति के बारे में तुम अपने से भी अधिक सोचते हो? और जैसे तुम उस व्यक्ति के बारे में सोचते हो, तुम उत्तेजित व व्यथित हो जाते हो। दूसरी ओर, जब तुम उस व्यक्ति के बारे में सोचते हो, जिससे तुम प्रेम करते हो, तुम्हें अच्छा लगता है और तुम्हारी तंत्रिका तंत्र वैसा ही रूप ग्रहण कर लेती है।

जब तुम्हारा तंत्रिका तंत्र इनमें से कोई भी रूप ग्रहण करता है, वह वैसा ही बन जाता है और तुम उस प्रकार के लोगों की ओर खींचते चले जाते हो। यह उलझे हुए अनुचित संबंध हैं। इसलिए ग्रस्तता क्रोध लाती है और ये अनुचित संबंध लाती है।

साभार अमर उजाला

Tuesday, October 22, 2013

शायद सब कुछ बदल गया...

शायद ज़िंदगी बदल रही है!!
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया

बहुत बड़ी हुआ करती थी..

मुझे याद है मेरे घर से"स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,

बर्फ के गोले, सब कुछ,

अब वहां "मोबाइल शॉप",

"विडियो पार्लर" हैं,

फिर भी सब सूना है..

शायद अब दुनिया सिमट रही है...
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जब मैं छोटा था,

शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...

मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,

घंटों उड़ा करता था,

वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,

वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है

और सीधे रात हो जाती है.

शायद वक्त सिमट रहा है..

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जब मैं छोटा था,

शायद दोस्ती

बहुत गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,

वो दोस्तों के घर का खाना,

वो लड़कियों की बातें,

वो साथ रोना...

अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,

जब भी "traffic signal" पे मिलतेहैं

"Hi" हो जाती है,

और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,

होली, दीवाली, जन्मदिन,

नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
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जब मैं छोटा था,
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,

छुपन छुपाई, लंगडी टांग,
पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप.

अब internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
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जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है...

"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
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ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...

कल की कोई बुनियाद नहीं है

और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..

अब बच गए इस पल में..

तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,
मेरे दोस्त,

और इस ज़िंदगी को जियो...
खूब जियो मेरे दोस्त.....!!!!

Monday, February 6, 2012

बेताब हो उधर तुम बेचैन हैं इधर हम

बेताब हो उधर तुम बेचैन हैं इधर हम,
पल-पल गुजरता जाए नादानियों का मौसम।
तुम सामने हो फिर भी दिल का अजब है आलम,
सासों के सुर हैं बोझल धड़कन की लय है मध्यम।
धीरे से मुस्कुरा दो ये बेकली तो हो कम,
बन कर हवा का झोंका जुल्फ़ों को चुम लेता।
ऐ काश कोई देखे ये बेबसी का आलम...
बेताब हो उधर तुम, बेचैन हैं इधर हम...!!!