किसी इन्द्रिय-संबंधित पदार्थ के साथ बारंबार संगत उसके लिए लालसा उत्पन्न करती है। हो सकता है तुम्हें हर सुबह कॉफी पीने की आदत हो, जबकि तुम कॉफी के चाव से पैदा नहीं हुए थे, तुमने अपने भीतर उसकी आदत प्रारंभ कर दी है, उसी ने लालसा को उत्पन्न किया है। ये सब कैसे शुरू हुआ?
कॉफी पीने की आदत कोई एक दिन में नहीं बनी! व्यसन किसी खास वस्तु के पुनरावर्ती अनुभव से प्रारंभ होता है। वो आदत बन जाती है- और आदत का स्वभाव है कि वह तुम्हें आनंद नहीं देती वह पीड़ा देती है। अतः कॉफी पीना तुम्हें स्वर्ग में लेकर नहीं जाएगी लेकिन यदि तुम नहीं पियोगे तब तुम नरक में होने जैसा महसूस कर सकते हो।
किसी खास इन्दिय-संबंधित वस्तु का पुनरावर्ती अनुभव या संगत तुम्हें उसे और भी पाने की इच्छा करवाता है। तुम उसके बारे में सोचते हो और वह उसे और भी पाने की संवेदना उत्पन्न करता है। तुम तंत्रिका तंत्र में जहां भी ध्यान देते हो, उस वस्तु के लिए तुम्हारी लालसा आरंभ हो जाती है।
संगति के साथ आती है इच्छा और इच्छा के साथ आता है क्रोध। जब भी व्यक्ति क्रोधित होता है। उस क्रोध के पीछे इच्छा होती है। चाहे पूरी हो या न हो, इच्छा क्रोध की ओर ले जाती है।
तो तुम किसी पर गुस्सा होते हो। दूसरा कदम है तुम उनसे अनुरक्त हो जाते हो। अब जब भी तुम किसी पर क्रोधित होगे, कभी न कभी पछताओगे, पश्चाताप और भी लगाव लाता है। पश्चाताप करने से तुम व्यक्ति या परिस्थिति से दूर नहीं जाते, उसके और भी नजदीक जाते हो। ये सब सूक्ष्म रूप में होता है।
क्या तुमने देखा है कि तुम जिस पर भी क्रोध या घृणा करते हो, उस व्यक्ति के बारे में तुम अपने से भी अधिक सोचते हो? और जैसे तुम उस व्यक्ति के बारे में सोचते हो, तुम उत्तेजित व व्यथित हो जाते हो। दूसरी ओर, जब तुम उस व्यक्ति के बारे में सोचते हो, जिससे तुम प्रेम करते हो, तुम्हें अच्छा लगता है और तुम्हारी तंत्रिका तंत्र वैसा ही रूप ग्रहण कर लेती है।
जब तुम्हारा तंत्रिका तंत्र इनमें से कोई भी रूप ग्रहण करता है, वह वैसा ही बन जाता है और तुम उस प्रकार के लोगों की ओर खींचते चले जाते हो। यह उलझे हुए अनुचित संबंध हैं। इसलिए ग्रस्तता क्रोध लाती है और ये अनुचित संबंध लाती है।
साभार अमर उजाला
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