Thursday, February 18, 2021

विवाहयोग्य सर्वगुणसंपन्न रिश्ता

🙏🏻 विवाहयोग्य युवक युवती के परिवार वाले ध्यान से पढ़े🙏🏻

एक 26 वर्षीय लड़की के पिताजी को उसके नजदीक के परिजन ने एक योग्य वर के बारे में बात की
लड़का शहर में नौकरी करता है, दिखने में सुस्वरूप है.
अच्छे संस्कार वाला है
लड़के के माँ बाप भी सुस्थिति में हैं
लड़के की उम्र 29 साल है
सब अनुरुप है
लड़की के पिताजी- : वो सब तो ठीक है,पर लड़के को पगार कितनी है?
मध्यस्थ : अच्छी है 25 हजार रुपये.
लड़की के पिताजी:- ह् !! शहर में 25 हजार से क्या होता है.
मध्यस्थ : दूसरा एक लड़का है, दिखने में ठीक है, पर पगार अच्छा है।पचास हजार !!
सिर्फ उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा है,वह 32 साल का है.
लड़की का पिताजी : पचास हजार ?
इस शहरमें 1BHK फ्लैट भी क्या वह खरीद सकता है क्या 50 हजार में?
तो मेरी बेटी को कैसे खुश रख पायेगा वो.
मध्यस्थ : और एक स्थल है. लड़का दिखने मे ठीक-ठाक है.
सिर्फ थोड़ा मोटा है.थोडे से बाल झड़ गए है.(दिमाग से काम कर कर के),पगार भी अच्छा १ लाख है, पर उम्र मात्र 34 साल है !!
देखो अगर आपको जँचता होगा तो.
लड़की के पिताजी : क्या चाटना है 1 लाख पगार को.

मेरी कन्या के लिये तो सुन्दर ही लड़का देखूंगा.

कोई और भी कोई अच्छा बताइये जी लड़का कम उम्र का हो. पर अच्छी पगार कमाता हो. घर भी अच्छा होना चाहिए और दिखने में भी स्मार्ट हो.

ऐसे ही बातो में 4/5 साल निकल गए फिर वह मध्यस्थ को बुलाकर बात हुई....

मध्यस्थ : अब आपकी लड़की हेतु योग्य वर देखना मेरे बस की बात नही.*अब मेरे पास आपकी लड़की के अनुरूप 38/40 साल वाले लड़को के ही रिश्ते है, आप बोलो तो बताऊ.
लड़की का बाप: कोई भी अच्छा सा घर बताइये इस उम्र में कही हो जाये ये क्या कम बात है लड़की की उम्र भी तो 31-32 हो रही है!!
अब मेरी लड़की ही अनुरूप नहीं रही तो मैं ज्यादा क्या अपेक्षा रखूँ!!

नोट:-
घर के बड़े बुर्जुगों से निवेदन है कि लड़की और लड़को की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करके उन्हें बर्बाद मत कीजिए। लड़की का अपना घर उसका ससुराल ही होने वाला होता है तो जरा समय से सही उम्र में भेज के उसे अपने सपनों के घर को सजाने-संवारने दीजिये।

आप अपने आस पास देखेंगे तो पायेंगे की बहुत से लोग शादी के बाद धनवान बने हैं

क्योंकि बहुत बार भाग्य शादी के बाद उदय होता है तो बहुत बार शादी के बाद व्यक्ति का सब कुछ चला जाता है.

इसलिए पैसे को आधार नहीं बनाये

शुरू में पगार कम है तो भी शादी के बाद लड़के लड़कियों में नयी उमंग आती है।

उनका संसार सुचारू रूप से व्यतीत होने के लिए दोनों मिल जुलकर मेहनत एवं विचार करके आर्थिक एवं सांसारिक अड़चनों पर मात करते है.
उनके माता पिता भी साथ सपोर्ट करते है

लड़के लड़कियों को तकलीफ सहन करने के लिये कोई माँ-बाप हवा पर छोड़ते है ऐसा नहीं है.

 इसका ध्यान लड़कियों के माता पिता को होना चाहिए

लड़का लड़की समान चलने वाले युग मे आप भी थोड़ा लड़की एवं लड़के के पीछे खड़े रहिये..

पर कृपया करके लड़के-लड़कियों की शादी,योग्य उम्र में होने दीजिए,
उनकी भी भावनाओं एवं इच्छाओं का ध्यान रखिए।

उम्र भर पैसा तो आता जाता रहेगा पर तारुण्य और उम्र वापस नहीं आएगी.......

आपकी सोच पूरे समाज के कुटुंब व्यवस्था को बचा सकती है.
जो कि भविष्य मे खतरे में पड़ने की संभावना अभी दिख रही है.
देखिये सोच कर...🙏

पहले 20 साल की उम्र में एक विवाहित स्त्री- पुरुष परिवार चलाना स्टार्ट कर दिए थे।

अब उनके ही बच्चे 35-40 साल में कुंवारे हैं बैठे हैं घर पर है।

और आज भी अपनी बेटी का जीवन बर्बाद कर सीना ताने अपनी बेटी के लिए सरकारी दामाद की तलाश कर रहे हैं ।

आज 60-65 साल का ही *मनुष्य का जीवन* हो गया है, भविष्य में तो और भी कम हो जाएगा जीवन.......

अगर वे 38-40 साल की उम्र में शादी कर अपने आने वाले बच्चों की शादी करने तक भी जीवन रहना असंभव हो जाएगा नाती- पोता तो बहुत दूर की बात है🙏🏻

*समय रहते सोच बदले और अपने बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए प्रयास करें......*

🙏🏻 सभी को शेयर करें🙏🏻

लेखक: 
इन्टरनेट पर से सधन्यवाद प्राप्त..

Saturday, January 23, 2021

आप जमा करेंगे वही आपको आखरी समय काम आयेगा..!

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            ''आप जमा करेंगे वही आपको 
              आखरी समय काम आयेगा''
      ________________________________


1 दिन एक राजा ने अपने 3 मन्त्रियो को दरबार में बुलाया, और तीनो को आदेश दिया के एक एक थैला ले कर बगीचे में जाएं और वहां से अच्छे अच्छे फल जमा करें .  

वो तीनो अलग अलग बाग़ में प्रविष्ट हो गए ,

पहले मन्त्री ने कोशिश की के राजा के लिए उसकी पसंद के अच्छे अच्छे और मज़ेदार फल जमा किए जाएँ ,उस ने काफी मेहनत के बाद बढ़िया और ताज़ा फलों से थैला भर लिया ,

दूसरे मन्त्री ने सोचा राजा हर फल का परीक्षण तो करेगा नहीं , इस लिए उसने जल्दी जल्दी थैला भरने में ताज़ा ,कच्चे ,गले सड़े फल भी थैले में भर लिए ,

तीसरे मन्त्री ने सोचा राजा की नज़र तो सिर्फ भरे हुवे थैले की तरफ होगी वो खोल कर देखेगा भी नहीं कि इसमें क्या है , उसने समय बचाने के लिए जल्दी जल्दी इसमें घास,और पत्ते भर लिए और वक़्त बचाया .

दूसरे दिन राजा ने तीनों मन्त्रियो को उनके थैलों समेत दरबार में बुलाया और उनके थैले खोल कर भी नही देखे और आदेश दिया कि , तीनों को उनके थैलों समेत दूर स्थान के एक जेल में ३ महीने क़ैद कर दिया जाए .

अब जेल में उनके पास खाने पीने को कुछ भी नहीं था सिवाए उन थैलों के ,

तो जिस मन्त्री ने अच्छे अच्छे फल जमा किये वो तो मज़े से खाता रहा और 3 महीने गुज़र भी गए ,

फिर दूसरा मन्त्री जिसने ताज़ा ,कच्चे गले सड़े फल जमा किये थे, वह कुछ दिन तो ताज़ा फल खाता रहा फिर उसे ख़राब फल खाने पड़े ,जिस से वो बीमार हो गया और बहुत तकलीफ उठानी पड़ी .

और तीसरा मन्त्री जिसने थैले में सिर्फ घास और पत्ते जमा किये थे वो कुछ ही दिनों में भूख से मर गया .

अब आप अपने आप से पूछिये कि आप क्या जमा कर रहे हो ??

आप इस समय जीवन के बाग़ में हैं , जहाँ चाहें तो अच्छे कर्म जमा करें .चाहें तो बुरे कर्म...

मगर याद..रहे जो आप जमा करेंगे वही आपको आखरी समय काम आयेगा क्योंकि दुनिया क़ा राजा आपको चारों ओर से देख रहा है..

Monday, May 14, 2018

मुझे अच्छा लगता है..!

जिस औरत ने भी इसे लिखा है कमाल लिखा है...........!
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मुझे अच्छा लगता है मर्द से मुकाबला ना करना और उस से एक दर्जा कमज़ोर रहना -

मुझे अच्छा लगता है जब कहीं बाहर जाते हुए वह मुझ से कहता है "रुको! मैं तुम्हे ले जाता हूँ या मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ "

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझ से एक कदम आगे चलता है - गैर महफूज़ और खतरनाक रास्ते पर उसके पीछे पीछे उसके छोड़े हुए क़दमों के निशान पर चलते हुए एहसास होता है उसे मेरा ख्याल खुद से ज्यादा है,

मुझे अच्छा लगता है जब गहराई से ऊपर चढ़ते और ऊंचाई से ढलान की तरफ जाते हुए वह मुड़ मुड़ कर मुझे चढ़ने और उतरने में मदद देने के लिए बार बार अपना हाथ बढ़ाता है -

मुझे अच्छा लगता है जब किसी सफर पर जाते और वापस आते हुए सामान का सारा बोझ वह अपने दोनों कंधों और सर पर बिना हिचक किये खुद ही बढ़ कर उठा लेता है - और अक्सर वज़नी चीजों को दूसरी जगह रखते वक़्त उसका यह कहना कि "तुम छोड़ दो यह मेरा काम है "

मुझे अच्छा लगता है जब वह मेरी वजह से सर्द मौसम में सवारी गाड़ी का इंतज़ार करने के लिए खुद स्टेशन पे इंतजार करता है -

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे ज़रूरत की हर चीज़ घर पर ही मुहैय्या कर देता है ताकि मुझे घर की जिम्मेदारियों के साथ साथ बाहर जाने की दिक़्क़त ना उठानी पड़े और लोगों के नामुनासिब रावैय्यों का सामना ना करना पड़े -

मुझे बहोत अच्छा लगता है जब रात की खनकी में मेरे साथ आसमान पर तारे गिनते हुए वह मुझे ठंड लग जाने के डर से अपना कोट उतार कर मेरे कन्धों पर डाल देता है -

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे मेरे सारे गम आंसुओं में बहाने के लिए अपना मज़बूत कंधा पेश करता है और हर कदम पर अपने साथ होने का यकीन दिलाता है -

मुझे अच्छा लगता है जब वह खराब हालात में मुझे अपनी जिम्मेदारी मान कर सहारा देने केलिए मेरे आगे ढाल की तरह खड़ा हो जाता है और कहता है " डरो मत मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा" -

मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे गैर नज़रों से महफूज़ रहने के लिए समझाया करता है और अपना हक जताते हुए कहता है कि "तुम सिर्फ मेरी हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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लेकिन अफसोस हम में से अक्सर लड़कियां इन तमाम खुशगवार अहसास को महज मर्द से बराबरी का मुकाबला करने की वजह से खो देती हैं,,,,,,,
फिर जब मर्द यह मान लेता है कि औरत उस से कम नहीं तब वह उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाना छोड़ देता है - तब ऐसे खूबसूरत लम्हात एक एक करके ज़िन्दगी से कम होते चले जाते हैं,
और फिर ज़िन्दगी बे रंग और बेमतलब हो कर अपनी खुशीया खो देती है,,,,,,,,,,,,,,

Note - शादी-शुदा जिन्दगी में एक दुसरे से मुकाबला नही बल्कि एक दुसरे से प्यार होना चाहिये, एक दुसरे के प्रति प्रेम आदर भाव होनी चाहिये...!!!

Friday, January 12, 2018

जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते।

*एक अच्छी कविता प्राप्त हुई है, जो मनन योग्य है।*

जाने क्यूँ,
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नहीं होते।
जाने क्यूँ,
अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे,
दिल की बातें।
जाने क्यूँ,
अब चेहरे,
खुली किताब नहीं होते।

सुना है,
बिन कहे,
दिल की बात,
समझ लेते थे।
गले लगते ही,
दोस्त हालात,
समझ लेते थे।

तब ना फेस बुक था,
ना स्मार्ट फ़ोन,
ना ट्विटर अकाउंट,
एक चिट्टी से ही,
दिलों के जज्बात,
समझ लेते थे।

सोचता हूँ,
हम कहाँ से कहाँ आगए,
व्यावहारिकता सोचते सोचते,
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से,
समस्या का समाधान,
कहाँ पूछता है,
अब बेटा बाप से,
उलझनों का निदान,
कहाँ पूछता है,
बेटी नहीं पूछती,
माँ से गृहस्थी के सलीके,
अब कौन गुरु के,
चरणों में बैठकर,
ज्ञान की परिभाषा सीखता है।

परियों की बातें,
अब किसे भाती है,
अपनों की याद,
अब किसे रुलाती है,
अब कौन,
गरीब को सखा बताता है,
अब कहाँ,
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है

जिन्दगी में,
हम केवल व्यावहारिक हो गये हैं,
मशीन बन गए हैं हम सब,
इंसान जाने कहाँ खो गये हैं!

इंसान जाने कहां खो गये हैं....!
🍁🍁

With thanks from Whatsapp...