दो रूहें जिस्म के जरिए मोहब्बत करती रही बेइंतहा,
अचानक खुदा का फरमान आया...
एक रूह जिस्म से निकल गई....
दूसरी उसके गम में डुब गई बेइंतहा,
उसने भी जिस्म छोड़ दिया मगर अफसोस....
बगैर जिस्म के दोनों एक दूसरे को पहचान न सकीं,
और जहां से आई वहां लौट गई.............
"यकीनन जिस्म जरीया है मोहब्बत का"
अचानक खुदा का फरमान आया...
एक रूह जिस्म से निकल गई....
दूसरी उसके गम में डुब गई बेइंतहा,
उसने भी जिस्म छोड़ दिया मगर अफसोस....
बगैर जिस्म के दोनों एक दूसरे को पहचान न सकीं,
और जहां से आई वहां लौट गई.............
"यकीनन जिस्म जरीया है मोहब्बत का"
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